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1 Nov 2021 · 1 min read

लो फिर आई है दीवाली

लो फिर आई है दीवाली
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लो फिर आई है दीवाली,
सूखी फ़ीकी है दीवाली।

रंगों बिन है आलम सूना,
सूनी – सूनी है दीवाली।

अंधेरे में डूबा जीवन,
तुम में डूबी है दीवाली।

टूटे सपने सारे सब के,
टूटी – फूटी है दीवाली।

स्वप्न भी हैं बिखरे-बिखरे,
फैली बिखरी है दीवाली।

दीपक रहते जलते बुझते,
जलती बुझती है दीवाली।

मनसीरत को है उलझाया,
उलझी-उलझी है दीवाली।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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