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23 Sep 2021 · 1 min read

हमारी ज़हालत

हम तो
बेमौत मारे गए
कातिल को
मसीहा समझकर!
कहीं के
ना रहे हम तो
रहजन को
रहनुमा समझकर!
इसे हमारी
बुजदिली या
ज़हालत ही
मान लीजिए कि!
चुपचाप
हमने कबूल किया
साजिश को
नसीबा समझकर!
Shekhar Chandra Mitra

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