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20 Sep 2021 · 1 min read

सोने की चिड़िया थे इक दिन भुखमरी तक आ गये।

गज़ल
काफिया- ई स्वर की बंदिश
रद़ीफ- तक आ गये
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2122……2122…….2122……212

हम खुशी से चलते चलते बेबसी तक आ गये।
सोने की चिड़िया थे इक दिन भुखमरी तक आ गये।

दोस्ती की थी जिन्होंने अपने मतलब के लिए,
कुछ ही दिन गुजरे थे फिर वो दुश्मनी तक आ गये।

लाये थे भागीरथी गंगा को तरने के लिए,
उस पतित पावन से अब सूखी नदी तक आ गये।

चखते थे जो मय कभी रंगीनियों के वास्ते,
पीते पीते अब वही सब मयकशी तक आ गये।

जिंदगी को प्यार का पर्याय कहते थे कभी,
जिंदगी से इतना ऊबे खुदकुशी तक आ गये।

साधु पुरुषों की हो संगत साधुवत गुण आयेंगे,
शायरों के साथ होकर शायरी तक आ गये।

प्रेम में प्रेमी बने गोपाल गोपी गोपियाँ,
प्रेम में दीवाने हो दीवानगी तक आ गये।

……✍️ प्रेमी

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