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28 Aug 2021 · 1 min read

बुढ़ापा दबे पांव आएगा !

आज जो चेहरा चमक रहा,
आभा से इतना दमक रहा।
वाणी में भी जो ये प्रभाव है,
विश्वास से भरा जो भाव है।

ये जो जोश है जीवन में,
आत्मविश्वास है अंतर्मन में।
छणिक है ये, सादा नहीं रहेगा,
समय का चक्र जो चल रहा,
धीरे धीरे सबको बदल रहा।

हम ही बेखबर यहां सोए है,
सपनो में अनायास खोए हैं।
भूल बैठे, सांसों की ये डोर है,
यात्रा इस छोर से उस छोर है।

जैसे जैसे शरीर थकने लगेगा,
रफ्तार भी जीवन की थमेगी।
ऊर्जा हमेशा ऐसी नहीं रहेगी,
छमता भी अपनी रोज़ घटेगी।

सगे संबंधी भी कम हो जायेंगे,
अपने भी स्वार्थ बस सताएंगे।
आंखें भी अनायास नम होंगी
धमनियों में गति भी कम होगी।

जीवन नया रूप तब दिखाएगा,
हर कोई हमें ही समझाएगा।
जो आया इक दिन जाएगा,
बुढ़ापा दबे पांव आएगा।

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