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13 Aug 2021 · 1 min read

हुँकार

कुसुम हूँ या दावानल हूँ
महाकाव्यों का सार हूँ मैं
जगत का प्रस्फुटित कली हूँ
जनमानस का कल्याण हूँ मैं

वात्सल्य छत्रछाया व्योम का
विप्लव पतझड़ हूँ मैं
नूतन सारंभ उन पयोधर का
मधुमास द्विज हूँ मैं

क्षणभंगुर नश्वर मंजूल काया
नवागंतुक मुकुल चेतना हूँ मैं
अचिन्त्य रंगीले स्वप्न
रत्नगर्भा का संसार हूँ मैं

श्रीहीन का करुण वेदना
क्षुधा का खिदमत हूँ मैं
अवसाद का है हाहाकार
निराश्रय का शमशीर हूँ मैं

अनुराग प्रकृति पुजारिन
सरिता पुनीत धारा हूँ मैं
सलिल – समीर – क्षिति चर
सुरभि सविता सिंधु हूँ मैं

अभंजित अचल अविनाशी
गिरिराज हिमालय हूँ मैं
सिंधु – गंगा – ब्रह्मपुत्र उद्गम
महार्णव का समागम हूँ मैं

व्यथा हूँ , उलझन हूँ , इंतकाल हूँ
दिव्यधाम भू-धरा हूँ मैं
किंचित माहुर उस भुजंग की
अमृतेश्वर का रसपान हूँ मैं

रश्मि चिराग रम्य उर की
मदन आदित्य नग हूँ मैं
मत पूछ मेरे रुदन हृदय की
अतुल चक्षुजल हूँ मैं

मत खोज तिमिर आगंतुक को
उसी का अविसार हूँ मैं
जन्म – आजन्म के भंवर से
अंतरात्मा का आधार हूँ मैं

जगदीश का फितरत महिमा
कुदरत का कलित हूँ मैं
मधुऋतु अपार सौंदर्य
ऋजुरोहित सप्तरंग हूँ मैं

स्वतंत्र हूँ , जद हूँ , श्रृंगार हूँ
नभ का उड़ता परिंदा हूँ मैं
प्रलय – महाप्रलय समर का
शंखनाद का हुँकार हूँ मैं

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