Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
17 Jul 2021 · 1 min read

अदृश्य शिष्य

एक दिन मैं अकेली
उसी नयी रास्ते से जा रही थी
मैं यहाँ हूँ, मास्टर दी
लगा कोई मुझे आवाज दे रहे हैं,
भ्रम समझ नज़रअंदाज़ कर दी
परंतु अगले दिन वही आवाज़-
मास्टर दी, मुझे नहीं पढ़ाएंगे
सप्ताहभर मेरी साथ,
ऐसे ही बीतने पर
फिरभी मैं इस विचित्र क्षण को
जताई नहीं किसी से
और इतवार की छुट्टी के बाद
स्कूल जाने के क्रम में
वही आवाज़ आने पर
निडर हो मैंने जवाब दी–
‘हाँ, पढ़ाऊँगी !
तुम है कौन ?
कहाँ हो ?
दिखाई नहीं पड़ रहे !’
मास्टर दी, मैं परसा हूँ !
‘परसा !!!! कौन !!!!’
वो अदृश्य शिष्य जो हैं !

Loading...