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23 Jun 2021 · 2 min read

अवसाद के क्षणों में भी

अवसाद के क्षणों में भी

अवसाद के क्षणों में भी
खुशियों के पल की आस जगा लेता है ये मन
अभाव के दौर में भी
खुशनुमा पलों की आस में जी लेता है ये मन |

रेगिस्तान में भी पानी की तलाश करने
खुद पर एतबार कर लेता है ये मन
पतझड़ के आने की भी आहट से
खुद को रोमांचित कर लेता है ये मन |

दूसरों की पीर को
अपनी पीर बना लेता है ये मन
एक उदास शाम के साए में भी
दो घूँट तलाश लेता है ये मन |

बंज़र धरती पर भी फूलों का उपवन रोशन करने को
लालायित हो जाता है ये मन
सपनों की दुनिया में इच्छाओं की
गाड़ी दौड़ा लेता है ये मन |

कभी ये गाड़ी सरपट दौड़ती
तो कभी छुक – छुक करती
खुली आँखों से जागते हुए भी
सुखद अनुभूति कर लेता ये मन |

सपनों की ड्रीमगर्ल को पाने
सफ़ेद घोड़े पर सवार होता ये मन
तो कभी जीवन के रेगिस्तान में
एक बूँद प्रेम को तलाशता ये मन |

कभी भावनाओं में बह निकलता
तो कभी जिद का समंदर हो जाता
कभी सत्य की खोज में वैरागी हो जाता
तो कभी सत्ता का विस्तार हो जाता |

कभी सपनों के अथाह सागर में
गोते लगाता ये मन
तो कभी सत्य से परिचित होकर भी
खुद को नहीं मना पाता ये मन |

अवसाद के क्षणों में भी
खुशियों के पल की आस जगा लेता है ये मन
अभाव के दौर में भी
खुशनुमा पलों की आस में जी लेता है ये मन |

रेगिस्तान में भी पानी की तलाश करने
खुद पर एतबार कर लेता है ये मन
पतझड़ के आने की भी आहट से
खुद को रोमांचित कर लेता है ये मन | |

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