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27 May 2021 · 2 min read

हसरतें

कितना भी मुश्किल हो
फिर भी न जाने क्यो खोई खोई सी
जिए जा रही हूँ कि कभी तो
सुबह रवि की पहली किरण को
शायद मैं जी सकूं मन भर के
पर जीवन की आपाधापी में मेरे मन की
ललक कहीं खो सी गई है पर फिर भी
मधुर सी हसरत मन मे लिए…
शीत की उस सुबह लगता हैं कि
अपने अहसासों को छू लूँ और
अपने भावों की गर्माहट की तरह क्यो न
मधुर सी सरगोशी से अपने इस ख्वाब को
कतरा कतरा ही सही पर पूरा करूँ मैं
मधुर सी हसरत मन मे लिए…
आज घर के बाहर निगाह गई तो
देखा एक चिड़िया को उसके ही नीड़ में
मस्ती से अपने बच्चों के साथ आनंद में लीन
धूप का आनंद लेते हुए मन हुआ क्यो न मैं भी
पंछी बन उड़ जाऊं गगन में भूल जॉउ ये सब
मधुर सी हसरत मन मे लिए…
अपने इस जीवन को क्यो झोंक डाला
आज की इस आपाधापी में क्यो मैं एक
खनक धूप की नही ले पाई जीवन मे
पेड़ के पत्ते के एक साये सी जीवन की भागमभाग
जीवन के पथरीले पथ से हट आना होगा मुझे वापिस
मधुर सी हसरत मन मे लिए…
अपनी प्रकर्ति के संग, कड़ी धूप के संग
ताकि जीवन की तपिश कुछ कम हो सके
सांझ को सूरज भी अपनी तपिश से निजाद पाता है
वैसे ही मैं इस कठिन जीवन यात्रा में शायद
सुखद अहसास क्षणिक सा सुकून पा सकूं बस
मधुर सी हसरत मन मे लिए…
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद
घोषणा:स्वरचित

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