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27 May 2021 · 1 min read

अपेक्षा

क्या कहूंँ उनसे ,
बागों में खिलते हैं वो।

अक्सर मुस्कुराते हैं,
खुद को समर्पित करते,
राह है उनकी अनजान,
अपेक्षा कैसे करें ।
क्या कहूंँ उनसे….।।१।

दर्द भी है मिशाल,
प्रेरित करते उनको,
देते जो अपने प्राण,
ये है वीर जवान; वीर जवान ।
क्या कहूंँ उनसे….।।२।

सुगंधित करते ईश को,
कर चरणों में विराजमान,
पल भर का जीवन उनका,
देते प्रसन्ता की मुस्कान ।
क्या कहूंँ उनसे….।।३।

बांधते स्वयं को,
एक डोर और गांँठ में,
जीवन भर बंध जाते,
मधुर बंधन में इंसान ।
क्या कहूंँ उनसे…..।।४।

मध्यम-मध्यम ताप में,
मुरझा जाते ये अनजान,
केश में हैं सजते,
बन नारी का श्रृंगार ।
क्या कहूंँ उनसे…….।।५।

हृदय-विदारक बन्धु भी,
सीखें प्रेम का वाचाल,
तन नहीं ये मन भी,
हर लेते हैं संसार ।
क्या कहूंँ उनसे……।।६।

स्वयं को अर्पित करते,
खुशियां देते हैं अपार,
बस यही अपेक्षा उनसे,
हृदय में जो बसते हैं ।
क्या कहूंँ उनसे……।।७।

#बुद्ध प्रकाश , मौदहा (हमीरपुर)

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