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16 May 2021 · 1 min read

आंसुओं की बरसात

तेरी आंसुओं की बरसात हे धरती ! ,
रह रह कर मेरे दिल में आग लगाए ।

क्या कहूं ? कैसे कहूं अब तू ही बता ,
तेरा दुख मुझसे सहा भी ना जाए ।

तेरी बेबसी को मैं समझ सकती हूं ,
मगर मेरी मजबूरियों को तू जान जाए।

मेरा वृक्षारोपण का नन्हा सा प्रयास ,
मालूम नहीं तुझे कितना सुख दे पाए ।

तेरे जीवन और श्रृंगार के लिए काव्य रचूं,
गनीमत है मेरा ये प्रयास कुछ तो रंग लाए ।

मगर मुझे यह भी पता है की ये काफी नहीं ,
जब तक जन जन का ह्रदय ना जाग जाए ।

तेरी सिसकियों की आवाज मैने ही सुनी है ,
तेरे आहों का गुबार मुझे अंतर तक छू जाए ।

तेरे दर्द- ओ- गम की इंतेहा का मुझे एहसास है,
काश ! तेरी पुकार कभी “उस” तक पहुंच पाए ।

कभी तो जोश आए उस दुनिया के मालिक को ,
तेरी आसुओं की बरसात उसके दिल को जलाए।

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