Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
14 May 2021 · 1 min read

विधवा नार

विधवा-नार (हाइकु)
****************

विधवा नारी
समाज से दुत्कारी
रहे बेचारी

दुखों का बोझ
ढ़ोती वो हर रोज
है गमगीन

घात आघात
मिलते प्रतिघात
सहे खामोश

लज्जा-घूंघट
सदा ओढ़े रहती
रहे शर्माती

आर्थिक तंगी
सहे नजर गंदी
करे गुजारा

घर बाहर
ढ़ूंढ़ती हैं नजरें
बचाती आन

रहे कुंठित
गुलाम जिंदगी
कठिन राह

विपदा भारी
निष्ठुर जीवन
घर -संसार

पति वियोग
मिले सदा विरोध
दे झकझौर

बाल गोपाल
संपत्ति जायदाद
बीते जीवन

टूटे सुपने
बिखरे अरमान
बनी लाचार

वक्त की मार
सहती बार बार
बदकिस्मत

प्यासी है देह
करें सभी संदेह
सहे विरह

बेदाग देह
दबाती प्रेमभाव
त्याग की मूर्ति

सुखविंद्र
करता है सम्मान
विधवा नार
*************

सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

Loading...