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4 May 2021 · 1 min read

वक्त है ,गुजर जाएगा

वक्त है, गुज़र जायेगा!

माना गर्दिश में सितारे हैं,
और हम सब ख़ुद से हारे हैं,
हम टूट चुके हालातों से,
एक वब़ा के ज़ख़्म के मारे हैं,
कितनी जाने जाती देखीं,
ये कितने बेदर्द नज़ारे हैं,
रोता अंबर धरती रोती,
जब-जब टूटे कुछ तारे हैं,
फिर भी आश, उम्मीद, ख़्वाब
ये सब कुदरत के इशारे हैं,
है डूब रही जो नाव ये मन की,
देखो कितने सारे किनारे हैं,
ग़र ग़म के मकां देखे हैं हमने,
तो ख़ुशी के भी कुछ गलियारे हैं,
धुंधली-धुंधली इन रातों का साया,
एक भोर में यूं छंट जाएगा,
थक हार मुसाफिर बैठ न तू,
ये वक्त भी यूं कट जाएगा,
एक दिन फिर से महकेंगी कलियां,
ज़र्रा ज़र्रा फिर से मुस्काएगा,
यूं डोर तोड़ न उम्मीद की तू,
ये वक्त भी यूं कट जायेगा !

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