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3 May 2021 · 1 min read

आस

आस

सन्नाटे में पसरा
हर सू कैसा शोर है
चीखता है अंतस
खामोशी चारों ओर है
गूँजती है मौत
हवा आदमखोर है
डट के रहना
इम्तिहानों का दौर है
रब का है साथ
इंसान नही कमज़ोर है
टूटेगी न साँस
ज़िंदा आस का ज़ोर है
कभी तो होगी
इस रात की भी भोर है
वो दिन दूर नही
नाचेगा मन का मोर है

रेखांकन।रेखा

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