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14 Apr 2021 · 2 min read

प्रेम की राह पर-6

लाल सिंह-चिंता न करो, तुम्हारे ख़्यालात के अनुसार ही सभी कालों की ऐतिहासिक क्रमशः झण्ड उतारेंगे। चुनौती की आन्तरिक पहलू ऐसा रहा है कि इतिहास को फिरंगियों ने जैसा तय कर दिया,हम लोगों ने उसे वैसा ही मान भी लिया,भले ही वह हमारी झण्ड उतारते रहें और रही सही झण्ड लाल सलामियों ने उतार दी।ये लोग 1857 के विद्रोह को किसानों का विद्रोह कह देते हैं,उनका अपना शास्त्र है।।ख़ैर छोड़ो,आद्यऐतिहासिक काल में गैरिक एवं कृष्ण लोहित मृदभांड संस्कृति इसके विशेषता को उज़ागर करते हैं और हमारे इतिहासकार उनमें ढूँढते हैं दूध दही और घी की खुरचन तय कराने को कि इसकी आयु क्या है और यह दूध किस जानवर का है।हमारे यहाँ तो इसके साधन नहीं हैं जिससे उड़ जाती हैं हमारी झण्ड और हम भेजते हैं ऑस्ट्रेलिया। वहाँ से लौटता है वह छः से आठ महीने बाद।पर क्या है कि यूपीएससी के खूसट पेपर सेटर को इससे उसके ऊपर कोई फ़र्क नहीं है वह इसके भीतरी भाग पर बना देगा एक झण्डदर्शन वाला प्रश्न और वह न होगा हमसे सही।यदि मारा तुक्का और सही गया और हमारे मित्र का गलत हुआ तो हमारा सीना 56 इन्च का तैयार हो जाएगा। साथ ही पृथ्वी पर हमसे बड़ा कोई परम विद्वान न होगा।बार-बार तो अपनी इस झंडदार तुक्काकला की भिन्न-भिन्न स्थानों पर गुणवान शेखी बघारेंगे।हमारा तो सही है रे।वैसे भी यूपीएससी के प्रश्नों में तुक्का मारना और उसका सही हो जाना ऐसा लगता है कि हाथी की सवारी कर ली हो।और गलत हो जाए तो ऐसा लगता है कि घोड़े ने टखने पर सनसनाती हुई लात रख दी और पश्चाताप में हँसी और रुदन दोनों उठते हैं।यह हर साल का लॉजिक है यूपीएससी एक दो प्रश्न एलियन वाला रखते हैं, जिसमें हिंदी मीडियम वाला बच्चा सभी एनसीईआरटी शास्त्र और जो कुछ भी मसाला इस बाबत आता है सबमें एक बार नजर घुमा लेता है परन्तु उसका तिलस्मी उत्तर कहीं नहीं मिलता है।जिससे उतर जाती है झण्ड। उसका उत्तर पाने में बाबा गूगल तब प्रकट होकर उत्तर देतें हैं।वह भी टूटा फूटा। ख़ैरबाबा गूगल यूपीएससी के प्रश्नों की खोज में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।आद्यऐतिहासिक काल की कोई लम्बी कहानी नहीं है।इसका इतिहास बस ऐसे ही बर्तन भाड़ों में निपट जाता है।

द्विवेदीजी की लाली-लाल सिंह अपने इन दो शब्दों को तीन शब्दों में बदल दो और अगली श्याम रंगी व्याख्या। जो हो अष्टस्वादयुक्त पानी पूरी की तरह। क्यों? लाल सिंह मुंशी जी भी पानी पूरी खाते थे
(अग्रिम रोटी आग के हिसाब से सिकेगी???)

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