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3 Apr 2021 · 1 min read

?दोहे?

??दोहे??

आनंद छिपा उर घना , खोजो करके ध्यान।
गन्ना भीतर रस लिए , चूसो तब पहचान।।//1//

प्यार रूह का दे सिला , संग रहें या दूर।
नभ में शोभित चाँद है , धरा चाँदनी नूर।।//2//

पर लाचारी पर हँसें , मूर्ख हुए वो लोग।
धूप-छाँव सम भाग्य है , पल बदले संयोग।।//3//

ठोकर खाकर सीख ली , चढ़े विजय सोपान।
हार मान बैठे अगर , बने रहे नादान।।//4//

बने आम ही खास है , लक्ष्य चले जो ठान।
लक्ष्य हीन का ठौर है , कटी पतंग समान।।//5//

दौलत खातिर झुक गया , बेचा स्वयं जमीर।
शर्म गयी तो समझिए , सूखा नैना नीर।।//6//

दया धर्म उर राखिए , इंसानी परिमाण।
जो जन इनसे दूर है , समझो वो पाषाण।।//7//

??आर.एस.’प्रीतम’??

Language: Hindi
2 Comments · 294 Views
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