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29 Mar 2021 · 8 min read

श्री साईं के सत्रह भजन

(भजन एक)

ईश्वर है, अल्लाह है, तू ही मेरा राम
सुन ले साईं राम तू, सुन ले साईं राम

जब उभरे कष्ट कोई, तूने कष्ट हरा है
जिसपे कृपा तेरी, उसका घरद्वार भरा है
तुझसे ही सबको, पड़ता है अक्सर काम
सुन ले साईं राम तू, सुन ले साईं राम…..

ओ भक्तों कोई बड़ा, ना छोटा है यहाँ पे
श्रद्धा-ओ-सबूरी है यहाँ, तू खड़ा है जहाँ पे
कर हम पे दया तू, आये तेरे हैं धाम
सुन ले साईं राम तू, सुन ले साईं राम…..

(भजन दो)

हो हो ओ हो….
हो हो हो हो हो हो….
हो हो ओ हो….
आ तो गए हैं सारे शिरडी के गाँव में —(दो बार)
भक्ति की छाँव में बिठाये रखना…….
बाबा …. साईं….
साईं…. बाबा ….
तुमको पूजा तो फूल खिल उठे मन में
भक्ति भाव से रहे सादे जीवन में
तुझसे शुरू, तुझ पे ये जीवन खत्म करें—(दो बार)
सारे ही आयें अब भक्ति के गाँव में
आ तो गए हैं सारे शिरडी के गाँव में
भक्ति की छाँव में बिठाये रखना……
बाबा …. साईं….
साईं…. बाबा ….
प्यारा सा घर हो अपना, मन्दिर सा जग हो
कोई भक्ति से पल भर न अलग हो
तेरे सिवा अब दूजी कोई राह नहीं —(दो बार)
भक्ति में डूबें रहे, श्रद्धा के गाँव में
आ तो गए हैं सारे शिरडी के गाँव में
भक्ति की छाँव में बिठाये रखना…..
बाबा …. साईं….
साईं…. बाबा ….

(भजन तीन)

मैं पूजता हूँ कबसे, तुझको ही साईं मेरे
दर्शन को तेरे आये.s.s.s.s.s..—(दो बार)
दर्शन को तेरे आये, शिरडी में भक्त तेरे…
मैं पूजता हूँ कबसे, तुझको ही साईं मेरे…

तुम्हारे भक्त हैं बाबा, तुम्हारे दास हैं सारे
तुम्हें है याद हम सबकी.s..s., तुम्हारे पास हैं सारे
दिल में समेटे श्रद्धा, सब आये हैं द्वार तेरे
मैं पूजता हूँ कबसे, तुझको ही साईं मेरे…

जो तेरे पास होते हैं, वो सब आबाद होते हैं
जो तुझसे दूर हैं बाबा, वो इक फ़रियाद होते हैं
खाते हैं बाबा ठोकर……….—(दो बार)
जो आये न द्वार तेरे
मैं पूजता हूँ कबसे, तुझको ही साईं मेरे…
दर्शन को तेरे आये………—(दो बार)
शिरडी में भक्त तेरे
मैं पूजता हूँ कबसे, तुझको ही साईं मेरे…

(भजन चार)

साईं सलोना रूप है, साईं हरि का मान
देह अलौकिक गंध है, प्रेम अमर पहचान // दोहा //

साईं, साईं, आन पड़े हम तेरे धाम
साईं, साईं, आन पड़े हम तेरे धाम
मोहे तुझसे पड़ा है काम // मुखड़ा //
साईं, साईं, आन पड़े….

आज मोहे तू अंग लगा ले
सीने में ऐसी उमंग जगा दे
छूटे कभी न वो रंग लगा ले
बाबा, हर पल जपूँगा तेरा नाम // १. //
साईं, साईं, आन पड़े….

दुखियों की ख़ातिर दुनिया में आया
चारों तरफ़ है तेरी ही माया
कोई भी तेरा पार न पाया
बाबा, मोहे दे दो भक्ति का दाम // २. //
साईं, साईं, आन पड़े….

मन में बसा लो, तन में बसा लो
इक बार मुझे बस, अपना बना लो
प्यार से अपने, शरण बुला लो
सोचो न अब, मेरा करो तुम काम // ३. //
साईं, साईं, आन पड़े….

राम रहीम भी तू ही है बाबा
तू ही काँशी, तू ही काबा
तुझसे बड़ा न कोई बाबा
साईं जपते रहे सब तेरा नाम // ४. //
साईं, साईं, आन पड़े….

भावों का है बंधन तुझसे
जीवों में है जीवन तुझसे
भोरों की है गुंजन तुझसे
बाबा, दे दो हमें वरदान // ५. //
साईं, साईं, आन पड़े….

पास तू रखना तारा बनाकर
मुझको सबसे न्यारा बनाकर
भक्तों में सबसे प्यारा बनाकर
साईं, सबसे बड़ा है तेरा नाम // ६. //
साईं, साईं, आन पड़े….

(भजन पाँच)

बाबा हम शिरडी आये, तेरे दर्शन करने
साईं-साईं जपते-जपते, कष्ट लगे हैं मिटने
बाबा हम शिरडी आये…..

दूर-दूर से लोग हैं आते, अपनी व्यथा सुनाते
बस्ती-बस्ती, पर्वत-पर्वत, तेरे ही गुण गाते
तेरे रूप का बाबा हमसे, वर्णन किया न जाये…..
बाबा हम शिरडी आये…..

कितने सूरज-चन्दा उभरे, साईं तेरे द्वारे
युगों-युगों से रूप अनेकों, बाबा तूने धारे
तुझको छोड़के भक्ति का, इतिहास रचा न जाये…..
बाबा हम शिरडी आये…..

भक्तों का दुःख-सुख तूने, दिल के बीच समोया
जब-जब हम पर कष्ट पड़े हैं, बाबा तू खुद रोया
जब-जब हम मुस्काते हैं तो, तू भी खुद मुस्काये…..
बाबा हम शिरडी आये…..

(भजन छह)

तू मेरा साईं, तू मेरा राम है।
तेरी पूजा निसदिन मेरा काम है।।
हो…..हो…..हो…..
नहीं तुझसे बड़ा है संत कोई….
और गुरु कोई….

तेरी भक्ति, तेरी शक्ति, जीवन का आधार।
हम पर बाबा यूँ ही बरसे सदा तुम्हारा प्यार।।
तू मेरा साईं, तू मेरा राम है।
तेरी पूजा निसदिन मेरा काम है।।
हो…..हो…..हो…..
नहीं तुझसे बड़ा है संत कोई….
और गुरु कोई….

हमारे सिर पर रखना बाबा, सदा ही अपना हाथ।
तेरी पूजा करते जाएँ, हम तो दिन और रात।।
तू मेरा साईं, तू मेरा राम है।
तेरी पूजा निसदिन मेरा काम है।।
हो…..हो…..हो…..
नहीं तुझसे बड़ा है संत कोई….
और गुरु कोई….

(भजन सात)

मेरे साईं की वाटिका में, प्यार के फूल खिले हैं
सुगंध में जिसकी खोकर, सब दीवाने झूम रहे हैं
जय हो-जय हो-जय हो, साईं बाबा की …….
जय हो-जय हो-जय हो, शिरडी वाले की …….

सब रास रचाओ मिलकर और भजन सुनाओ खुलकर
यूँ रात बिताओ ऊँचे सुर में ‘साईं-साईं’ जपकर
यूँ लगे भक्तों के बीच खुद बाबा भी झूम रहे हैं //१.//
जय हो-जय हो-जय हो, साईं बाबा की …….
जय हो-जय हो-जय हो, शिरडी वाले की …….

तन-मन-धन मैं लुटाऊं और साईं-साईं चिल्लाऊँ
कुछ सुध न रहे अपनी भी, मैं आठों याम ही गाऊँ
यूँ लगे बाबा के दर पे, धरती-अम्बर झूम रहे हैं //२.//
जय हो-जय हो-जय हो, साईं बाबा की …….
जय हो-जय हो-जय हो, शिरडी वाले की …….

(भजन आठ)

जबसे साईं से लौ लगाई है
हर ख़ुशी मेरे दर पे आई है
हर ख़ुशी मेरे दर पे…….

मैंने बाबा से कुछ भी माँगा नहीं
बिन कहे हर मुराद पाई है //१.//
हर ख़ुशी मेरे दर पे…….

अश्क पोंछे जो दीन दुखियों के
ज़िंदगी मेरी मुस्कुराई है //२.//
हर ख़ुशी मेरे दर पे…….

ज्ञान की रौशनी में उतरे तो
ज़िंदगी मेरी जगमगाई है //३.//
हर ख़ुशी मेरे दर पे…….

(भजन नौ)

दर ये साईं का अपना शिवाला है रे
घर ये शिरडी का जग से निराला है रे
घर ये शिरडी का …….

थी अंधेरों में गुम ये मेरी ज़िंदगी
दर पे बाबा के पाया उजाला है रे //१.//
घर ये शिरडी का …….

उम्र बाबा के चरणों में ही बीतेगी
मुझको साईं बचपन से पाला है रे //२.//
घर ये शिरडी का …….

साईं के नाम से, रोग कटते सभी
दर ये साईं का सबसे निराला है रे //३.//
घर ये शिरडी का …….

(भजन दस)

साईं तेरा हमसफ़र है
फिर तुझे काहे का डर है
फिर तुझे काहे का…….

भक्ति का है वह उपासक
भक्त ही उसका शिखर है //१.//
फिर तुझे काहे का…….

जिसने भी बाबा को पूजा
वो अजर है, वो अमर है //२.//
फिर तुझे काहे का…….

है दया का साईं सागर
प्रेम ही शिरडी का घर है //३.//
फिर तुझे काहे का…….

साईं से तू लौ लगा ले
जगमगाता प्रेम दर है //४.//
फिर तुझे काहे का…….

(भजन ग्यारह)

शिरडी में बसते हैं, भगवान दिवाने
प्रश्न है आस्था का, तू माने या न माने
बाबा में दिखते हैं, भगवान दिवाने
साँच को है आँच क्या, तू माने या न माने
साँच को है आँच क्या…….

देखी दुनिया घूमती, घूमता कौन है
देखी हवायें चलती, चलाता कौन है
विज्ञान भी इस बात पे, अब तक मौन है
राज़ कोई न जाने, विधाता कौन है //१.//
साँच को है आँच क्या…….

सदियों से जो सच था, वो सच है आज भी
ईश्वर जो कल था, वो सच है आज भी
जैसे बुद्ध-ईसा-नानक, जन्मे सूफी-संत
ॐ साईं के रूप में, वो सच है आज भी //२.//
साँच को है आँच क्या…….

(भजन बारह)

मानव की सेवा कर बन्दे, यह बाबा का कहना है
मिल-जुलकर हर मानव को यहां, प्यार-प्रेम से रहना है
मिल-जुलकर हर मानव को…….

प्यार से संसार बचा और जीने का आधार बचा
मानवता के हित में पगले, भीतर का संस्कार बचा
अच्छाई तो मानवता का सर्वोत्तम गहना है //१.//
मिल-जुलकर हर मानव को…….

अच्छे कर्मों से ही तो हर मानव जग में छाता है
वह अंत समय में मुक्ति पाकर साईंधाम को जाता है
नेकी तेरे साथ चलेगी, यह बाबा का कहना है //२.//
मिल-जुलकर हर मानव को…….

(भजन तेरह)

मेरे दिल में बाबा,
तस्वीर तुम्हारी है
कैसे करूँ बयाँ मैं,
ये बात निराली है…….
कैसे करूँ बयाँ मैं …….

जो तेरे दर पे आये
खाली न कभी वो जाये
तू भी किस्मत आज़मा ले
और बिगड़ी बात बना ले
बाबा के दरवाज़े,
हर शख्स सवाली है //१.//
कैसे करूँ बयाँ मैं …….

छोटी-छोटी खुशियां हैं
प्यार भरी ये गलियां हैं
रंग उड़े और फूल खिले
रोज़ यहाँ पर दीप जले
हर दिन यहाँ होली,
हर रात दिवाली है //२.//
कैसे करूँ बयाँ मैं …….

(भजन चौदह)

हे साईं के चरणों तले, श्रद्धा की अलख जले
भक्ति में डूबे, भक्तजनों से, बाबाजी रोज़ मिले
हे साईं चरणों तले…….

शिरडी के गांव में, भक्ति की छाँव में, श्रद्धा के फूल खिले //१.//
हे साईं चरणों तले…….

श्रद्धा का खेला, भक्तों का मेला, बाबा से मिलते गले //२.//
हे साईं चरणों तले…….

बाबा के हाथों में, श्रद्धा का जादू, पानी से दीप जले //३.//
हे साईं चरणों तले…….

श्रद्धा सबुरी में, जिसने भी झाँका, उसको ही साईं मिले //४.//
हे साईं चरणों तले……

(भजन पन्द्रह)

अल्लाह-जीसस साईं राम
सबके पूरण करता काम
साईं है सुखों का धाम
ईश्वर का यह प्यारा नाम
साईं है सुखों का धाम …….

साईं के दर पर छूत नहीं है
नीच नहीं कोई ऊंच नहीं है
सबमे बसते साईं राम //१.//
साईं है सुखों का धाम …….

जात नहीं कोई पात नहीं है
इस दर पे कोई घात नहीं है
सबका मालिक साईराम //२.//
साईं है सुखों का धाम …….

इस दर पे जो शीश झुकाये
मनचाही वो मुरादें पाये
सबका दाता साईराम //३.//
साईं है सुखों का धाम …….

(भजन सोलह)

मायूस न हो साईं के दर पे बदल जाएँगी तस्वीरें
हर लेंगे पलभर में दुःख साईं, बदल जाएँगी तकदीरें // शे’र //

अपने भीतर, तू निरंतर, लौ जला ईमान की
तम के बादल भी छंटेंगे, यादकर साईं राम की // मुखड़ा //
अपने भीतर तू निरंतर …………………..

साईं के ही नूर से है , रौशनी संसार में
वो तेरी कश्ती संभाले, जब घिरे मंझधार में
हुक्म उसका ही चले, औकात क्या तूफ़ान की //1.//
अपने भीतर तू निरंतर …………………..

माटी के हम सब खिलोने, खाक जग की छानते
टूटना है कब, कहाँ, क्यों, ये भी हम ना जानते
सब जगह है खेल उसका, शान क्या साईं राम की //2.//
अपने भीतर तू निरंतर …………………..

दीन-दुखियों की सदा तुम, झोलियाँ भरते रहो
जिंदगानी चार दिन की, नेकियाँ करते रहो
नेकियाँ रह जाएँगी, निर्धन की और धनवान की //3.//
अपने भीतर तू निरंतर …………………..

आँख से गिरते ये आँसू, मोतियों से कम नहीं
कर्मयोगी कर्म कर तू, मुश्किलों का ग़म नहीं
दुःख से जो कुंदन बना, क्या बात उस इंसान की //4.//
अपने भीतर तू निरंतर …………………..

(भजन सत्रह)

भेद जिया के खोल ऐ बन्दे
हर पल साईं बोल ऐ बन्दे
साईं – साईं …….साईं – साईं …….
साईं – साईं …….साईं – साईं …….
भेद जिया के …….

हाल हमारा साईं जाने।
साईं सबकी रग पहचाने //१.//
भेद जिया के …….

द्वार से खाली कोई न जाये ।
दुःख विरहा में हम सब आये //२.//
भेद जिया के …….

जात-पात कोई धर्म न माने ।
राग द्वेष कोई मन में न ठाने //३.//
भेद जिया के …….

ईश्वर-अल्लाह रूप उसी के ।
एक नूर से सब जन उपजे //४.//
भेद जिया के …….

बाबा से गर कोई पूछे ।
एक माल में हम सब गुंथे //५.//
भेद जिया के …….

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