गुरु की महिमा
गुरु की महिमा का नहीं, मैं कर सकूं बखान।
गुरु की महिमा है अतुल,खुद में इक व्याख्यान।।१)
इस जग में सबसे बड़ा,है गुरुवर का स्थान।
यदि सदगुरु किरपा मिले,मिलते हैं भगवान।।(२)
अंधकार मन का हरें,ज्ञान चक्षू दें खोल।
सीख अनोखी दें सदा,गुरु के कडुवे बोल।।(३)
ज्ञान जगत के मूल में,गुरु ही गुण की खान।
ज्ञान लुटाता शिष्य पर, सद् गुरु की पहचान।।(४)
ज्यों कुम्हार माटी मथे,देता है आकार।
स्वप्न शिष्य के रूप में,करता है साकार।।५)
सब कुछ अपना वारि दे,भर-भर ज्ञान लुटाय।
ऐसे गुरुवर को नमन,कहै अटल कविराय।।(६)