व्यंग*मन के कालों से भले*
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कीमत कितनी गिर गई,इंसानों की आज।
फिर भी करता स्वयं पर,वह नाहक ही नाज।
धन लालच में बेचता, देखो अपना वोट।
पूंछ हिलाता श्वान सम,पाकर कतिपय नोट।
पौव्वै अद्धे में बिका, इंसां का ईमान।
मत को अपने बेचता,भारत का इंसान।
मन के कालों से भले,तन के काले लोग।
दीमक जैसा लग रहा, कुछ को बस यह रोग।
भीतर से कछु और हैं,बाहर से कछु और।
ऐसे मन के लोग ही, करते हैं नित शोर।।
चोर चोर चिल्ला रहे,मिलकर सारे चोर।
चोर छुपा अन्त:मिला, किया खुदहिं जब गौर।।
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प्रदत्त विषय शब्द::– पंडित,प्राज्ञ, कोविंद,मनीषी,विद्वान
।।शब्द मंथन ।।
विधा:दोहा
देखें व्यंग
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(१)
महलों से आवास हैं,होटल खाना खाय।
सौ-सौ चूहे खायकर,पंडित खुदहि बताय।।
(२)
सुधी मनीषी प्राज्ञ जन,कोविद पंडित होय।
इन सा बुद्धी में यहां, दूजा है नहि कोय।
दूजा है नहिं कोय इहि,विचक्षण औ विद्वान।
ऐसे बुद्धीमान जन, होते बहुत महान।।
?अटल मुरादाबादी ?