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5 Mar 2021 · 1 min read

मन का चंचल मोर

आँखों पर अपनी मुझे, होता नहीं यकीन ।
फागुन ऐसे वृक्ष पर, बिछा गया कालीन ।।

सुमनाच्छादित डालियाँ, लेती देख हिलोर ।
लगा नाचने यह रुचिर, मन का चंचल मोर ।।
रमेश शर्मा.

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