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16 Feb 2021 · 3 min read

' दिया तले अंधेरा ' / हसरत

‘ दिया तले अंधेरा ‘ लाखो बार कहा और सुना लेकिन ये मुहावरा खुद मैं बन जाऊँगीं सोचा न था….अपनी ‘ हालत ‘ बताती हूँ जी हाँ ‘ हालत ‘ ये मत समझीयेगा की मैं एकांत वातावरण में टेबल कुर्सी पर बैठ कर बगल में चाय – कॉफी का मग रखा हुआ और मैं नहा – धो , सजी – सँवरी हाथ में कलम ले भावपूर्ण मुद्रा में गहरे सोच में डूब कर कोई रचना लिखने की तैयारी में हूँ या लिखती हूँ । इनमें से एक भी बात मेरे साथ लागू नही होती है लिखना तो सन् 1982 से शुरू किया मेरी कविताएं पढ़ कर मेरी सीनियर ने कहा की तुम तो अच्छा लिखती हो कही भेजती क्यों नही ? उन्होने ही इस ग्रुप के विषय में बताया , उनका कहा मान कर मैने कविताएं भेजना शुरू किया । ग्रुप में देखती थी की लोग दिये गये विषयों पर चित्रों पर अपनी रचना लिखते हैं मैं भी ऐसा कर सकती हूँ इसका एहसास ही नही था मुझे लेकिन मैने कोशिश की और कर रही हूँ , मेरा भी मन करत है की मै भी अच्छे लेखकों की तरह लिखूँ पाठकों का और रचनाकारों का मानना है की मैं भी उत्कृष्ट लेखन कर सकती हूँ लेकिन मैं इसको समझ नही पा रही हूँ की क्या मैं वाकई ऐसा कर सकती हूँ ? क्योंकि मेरा ज्यादातर समय रसोईघर में गुजरता है ये मेरे सूकून की जगह है और उपर से जब बात हाथ के लाजवाब स्वाद की हो फिर फिर तो पूछिए ही मत…ढ़ेरो पकवान वो भी पारंपरिक , कॉन्टीनेंटल , इटैलियन , चाईनीज़ के बाद बच्चों के कमेंट ‘ मम्मा तुमने सब कुछ थोड़ा ज्यादा नही बना दिया ? घर की साफ सफाई भी मैं ही करती हूँ सफाई की बीमारी जो है इन सब के बीच एप्रेन बदल कर पॉटरी करती हूँ फिर थोड़ी देर में एप्रेन बदल कर रसोई में इन सब कामों के बाद अपने बीन बैग पर बैठ कर लिखती हूँ दो लाईन लिखी नही की मम्मा भूख लगी है….ममता आज खाने में क्या है ? परोस कर भी मुझे ही देना है किसी को कुछ किसी को कुछ…पूरा का पूरा रेस्टोरेंट चलाता है । फिर वापस आकर लिखती हूँ….अरे ! ये तुमने कब पोस्ट किया तुम तो काम कर रही थी ? ऐसे सवालों की आदत है मुझे , अभी भी दो बार उठ चुकी हूँ , लेखन के लिए अपना ख़ास समय देना चाहती हूँ देखिए ऐसा समय कब मिलता है अभी भी कई ग्रुप पर विषय और चित्र मेरे लेखन के इंतजार में हैं….’ दिया तले अंधेरा ‘ इस कहावत को सार्थक करती हूँ सबके लिए समय है मेरे पास बस अपनी लेखनी के लिए नही है दूसरों से क्या उम्मीद करूँ खुद अपनी ही काबिलियत समझ नही पा रही हूँ की जब बचे हुये समय में मैं थोड़ा – बहुत लिख सकती हूँ तो ज्यादा समय में तो और अच्छी कोशिश कर सकती हूँ……..हर एक हुनर समय माँगता है मुझसे भी मेरा लेखन समय माँग रहा है जो मैं दे नही पा रही हूँ ….

‘ सबको रौशनी देना मेरी तो फितरत है
अपने तले का अंधेरा दूर करने की हसरत है ।’

स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , वाराणसी , उत्तर प्रदेश )

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