दोहे , तुकबन्दी
जीवन तो एक कर्म है,
करते रहो मूदकर आँख।
मांगो इससे कुछ नही,
रख आश पर हाथ ।।
जै जै जले अग्निशिखा,
तै तै जले शरीर ,
एक दिन बचेगी राख बस,
हो जाएगा सारा तेल फकीर ।।
अहम बाज का घोसला,
होता चोटी के पार ।
अति हवा मिले अति धूप मिले,
रहजाते तिनके चार ।।
बैर सांप की काचुरी,
अटके राह हजार ।
नाग छटके छोड़ के,
सरपट दौड़े राह ।।
लोभ लालच मरता नही,
रह जाता थोड़ा हरबार ।
जितना झाड़ो द्वार को,
रहता कूड़ा हर बार ।।
घमंड एक बार जो उग गया,
अमर बेल की भांति ।
सारा वृक्ष जकड़ ले,
तड़फती रहे आत्मा भूखी प्यासी ।।
घृणा नाग फास है,
जितना हिलो उतना जकड़े साँस ।
ढांचा ढांचा ही बचा,
पिसजाते अंदर सारे हाड़-मांस ।।
धरम आंधरी कोठरी,
दिखता ना आर-पार ।
हर रस्सी नागिन लगे,
नागिन लगे गले का हार ।।
तृष्णा का घड़ा भरता नही,
जैसे सागर का हाल ।
डार डार पानी सूख गयी,
नदियां बन गयी ताल ।।
जीवन जाल मांकड़ी,
जिसमें दीखे आर-पार।
कीट पतंगा बचता नही,
ज्ञानी समझे चाल ।।
प्रेम बूँद बदरिया,
उड़ती रहती घरबार ।
शुद्ध करो ज्येष्ठ में,
बरसे आके आषाढ़ ।।
प्रेम राह आसान नही ,
जैसे मीन का जाल ।
जबतक रहे पानी तले,
बाहर आते ही निकले जान ।।
प्रेम प्यास बाबड़ी,
देखे ना पानी का हाल ।
गले को पहले तर करे,
चाहे पेट में जले मसाल ।।