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22 Dec 2020 · 1 min read

कोरोना (ग़ज़ल)

रब के दर पे सर झुका कर देख लूँ
सबके हक़ में मैं दुआ कर देख लूँ

इस वबा ने क़ैद घर में कर दिया
अब परिंदों को रिहा कर देख लूँ

ज़िन्दगी से मौत की है ठन गई
धड़कनों को मैं जिता कर देख लूँ

आंकड़े बढ़ते रहेंगे कब तलक
कुछ रियाज़ी* अब लगा कर देख लूँ

लोग अपने घर में ही महफूज़ हैं
बात ये सबको बता कर देख लूँ

ख़त्म हो जाएगी शायद ये वबा
क़ायदों को भी निभा कर देख लूँ

किस ख़ता की मिल रही है ये सज़ा
रब को इक अर्ज़ी लगा कर देख लूँ

– पल्लवी मिश्रा, दिल्ली।

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