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21 Dec 2020 · 1 min read

मैं फिर आऊंगा

मैं फिर आऊंगा!

शेष – अशेष के जटिल भंवर में
तोड़ समर के चक्रव्यूह मैं!
अश्रुपूर्ण आंखों को छूकर
भींगे बालों को सहलाने।
तुमसे मिलने,
मैं फिर आऊंगा!

चिंतन के मुखरित होने तक
पंखों के पुलकित होने तक।
रूक जाना तुम आस लगाए!
उस भींगे बालिस्त के नीचे
सुन्दर स्वप्न जगाने;
मैं फिर आऊंगा!

उड़ जाना तुम पंख लगाए
भर लेना सारा आकाश।
चांद – सितारे, अबुझ पहेली
सब होंगे जब अपने पास!
फूलों की घाटी से मिलने
तिलक लगाने ;
मैं फिर आऊंगा!

मत घबराना शेष समर में
दूर कहीं जब सारे होंगे!
उतर सलोने चांद के मानिंद
आंगन में;
मैं फिर आऊंगा!

© अनिल कुमार श्रीवास्तव

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