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22 Nov 2020 · 1 min read

प्यार के दुश्मन को समझाना छोड़ दिया

प्यार के दुश्मन को समझाना छोड़ दिया
हमने यारों कब से ज़माना छोड़ दिया

राही को रस्ता दिखलाना छोड़ दिया
तुमने क्यूँकर दीप जलाना छोड़ दिया

बूढ़े बरगद ने मुस्काना छोड़ दिया
पंछी ने भी आना जाना छोड़ दिया

बादल ने पानी बरसाना छोड़ दिया
दहक़ानों ने आस लगाना छोड़ दिया

रोटी की ख़ातिर शहरों में आया है
बचपन का वो गाँव पुराना छोड़ दिया

जब बोले , दस्तार बिना ही आना है
हमने फिर दस्तूर निभाना छोड़ दिया

जब से तुम परदेस गये हो छोड़ हमें
ख़ुशियों ने फ़ुरक़त में आना छोड़ दिया

तन्हाई में जीना है बस यादों में
और कोई ‘आनन्द’ बहाना छोड़ दिया

~ डॉ आनन्द किशोर

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