आज़ाद गज़ल
साया-ए-मजबुरी में जो पले थे
लोग वही बेहद अच्छे भले थे ।
आपने जश्न मनाया जिस जगह
वहीं रातभर मेरे ख्वाब जले थे।
हुआ क्या हासिल है मत पूछिये
क्या सोंच के हमने चाल चले थे।
हो गए शिकार शिक़्स्त के यारों
सियासत के पैंतरे ही सड़े गले थे ।
छिड़क गए है नमक ज़्ख्मों पर
‘वो’जो मरहम लगाने निकले थे।
-अजय प्रसाद