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8 Nov 2020 · 1 min read

बंद पड़ीं है लेखनी

बंद पड़ीं है लेखनी, मूक हुए सब भाव।
हर पल खलता है मुझे, केवल यही अभाव ।। १

दहक रही है ज़िन्दगी, जैसे जले अलाव।
मेरे अंदर घुट रहे, मेरे सारे भाव।। २

हे!कविता मुझको लिखो, आओ मन के गांव ।
फिर से पाऊँ मैं वहीं, शीतल निर्मल ठांव।।३

मन के भावों को मिले, फिर से नवल प्रभाव।
छंद बद्ध होने लगे, कविता का घेराव।। ४

कविता तुम मुझको चुनो,भर दो सारे घाव ।
हृदय कुन्ज आकर बसो, कर दो दूर तनाव।। ५

कविता सरिता सी बहो,सागर सा गहराव
जब तक मैं हूँ तुम रहो,लिए सुगंधित भाव ।।६

लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली

Language: Hindi
6 Likes · 5 Comments · 331 Views
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