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29 Oct 2020 · 3 min read

बिहार का चुनावी विकाश

वर्तमान समय में बिहार प्रान्त में विधान सभा के चुनाव चल रहे हैं। जिसमे देश के बड़े बड़े चोटी के नेता रैलियां कर बिहार की जनता को अपने पक्ष में वोट देने के लिए आकर्षित कर रहे हैं । चुनावी वादे जुगनुओं की तहर बिहार के आसमान में तारे बन टिमटिमा रहे हैं और जनता भी बांगड़ू बन उन्ही को देख अपना व्रत खोल रही है।
सबसे बड़ी चुनावी रैलियां हमारे प्रधानमंत्री जी कर रहे हैं जो हर रैली को संबोधित करते हुए बिहार की जनता से कह रहे हैं कि निवर्तमान मुख्यमंत्री जी ने बिहार का विकास किया है । इन्होंने बिहार में पक्की सड़क, पानी के नल, स्कूल-कालेज, राशन कार्ड, हर घर में बिजली इत्यादि काम करके बिहार का विकास किया है ।
अर्थात भारतीय नेताओं की नजरों में आधुनिक भारतीय जनता के लिए विकास का मतलब अभी भी पक्की सड़क,नल, राशन कार्ड, अति सामान्य स्कूल और बिजली कनेक्शन ही है। अगर यही देश की जनता का विकाश है तो फिर आधुनिक जनता की मूलभूत जरूरत क्या है..?
देश के प्रधानमंत्री भी इस मूलभूत जरूरत को देश की जनता का विकास कहते है। जबकि प्रधनमंत्री जी का लक्ष्य 2024 तक भारत को पांच ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी बनाना है । भारत को विस्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था कहते है । भारत को विस्व गुरु और विस्व बाजरा कहते हुए थकते भी नही। किन्तु देश की जनता से आज भी सड़क पक्की कराने और राशन कार्ड बनाने और अस्पताल खुल बाने के लिए वोटों को आकर्षित कर रहे हैं ।
वर्तमान विस्व जहाँ चाँद और मंगल पर वस्तियां बसाने की सोच रहा है , डेटा स्पीड 4G से 5G हो गयी है टीवी मोबाइल घड़ी बैंक जब सब कुछ जेब में हो गयी है, आर्टिफिसिल एनटेलिजेंसी मनुष्य रूप धारण कर रही है जब रेल गति 300 -400km प्रति घण्टा हो गयी है जब जहाज ने दुनिया को घण्टो में समेट दिया है जब हॉस्पिटल स्वयं के स्तर पर मानव अंग बनाने लगे है और भी तमान तकनीकी ने जब मानव को सुपर ह्यूमेन बना दिया है तब उस दौर में भारतीय जनता के लिए और बिहार की जनता के लिए विकास का अर्थ पक्की सड़क और राशन कार्ड ही है..? यह सोच कर आश्चर्य होता है कि हम विस्व में कहाँ पर खड़े हैं ।
अगर बड़े बड़े शहरों को छोड़ दिया जाय तो आज भी भारत 20 वीं शदी में जीवन जी रहा है। शहरों का हाल तकनीकी स्तर पर देहातों से जरूर अच्छा हो सकता है किंतु शहरों का जीवन गाँवों के स्तर से बहुत ही ख़राब है। शहरों में दुरी किलामीटर में नही घण्टो में मापी जाती है क्योंकि बढ़ती आबादी और रोजगार के केन्द्रीयकरण ने शहरों को चीटियों का घर बना दिया है और प्रदूषण ने तो पूरे शहर को ही अस्थमा कर दिया है।
इन चुनावो के दौरान बिहार में देखने को मिल रहा है जब कोई नेता हेलीकॉप्टर से प्रचार करने आता है तो दूर दूर से लोग हेलीकॉप्टर को देखने के लिए जमा होते है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि बिहार की शिक्षा और तकनीकी विकास का स्तर क्या है।
क्या इसी भीड़ और जनता के कौतूहल को देखकर प्रधानमंत्री भारत को विस्व शक्ति कहते है..?
पता नही देश की/बिहार की जनता ना समझ है या फिर देश के नेता इसे मुर्ख समझते है।

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