Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
2 Aug 2024 · 1 min read

“कदम्ब की महिमा”

महाकवि रसखान को सादर नमन करते हुए उनकी कालजयी रचना-
जो खग हौं तो बसेरो करौँ मिलि,
कालिन्दी कूल कदम्ब की डारन..!
की लय-ताल से प्रेरित “कदम्ब की महिमा”विषय पर सृजित इस कवित्त मेँ हमने अन्त मेँ इन दो पँक्तियों को जस की तस रखा है।

कान्ह दियो कर्तब्य की सीख,
जु धीरज, धरमहिँ, धन्य सनातन।
तोड़ि दियो दुर्योधन दम्भ,
यहै सखि अमर है रीति पुरातन।।

लीन्हा न सुधि, भए बरस अनेक,
बिथा केहि भाँतहि, होइ निवारन।
गोपि न मानत, ऊधौ बात,
रटत बस बेगहिं श्याम निहारन।।

रूप सकल चहुँ ओर सुझात,
न और कछू मोहि बैन सुहावन।
छबि गिरधारि, बसी हिय माहिं,
दिवानि भई हुँ जु, प्रीति कै कारन।

बनत न “आशादास” कहात,
सुनावौं केहि जु है मनभावन।
गोकुल जनम जु होइ हमार,
करौँ नित दरसन भूमि जु पावन।

होहुँ जु धेनु, तु नन्द दुआर,
बँधौँ, जिमि, भाग हमार जुड़ावन।
जो खग हौं तो बसेरो करौँ मिलि,
कालिन्दी कूल कदम्ब की डारन..!

धेनु # गाय cow
भाग # भाग्य, luck

##————##————-##———

Language: Hindi
4 Likes · 4 Comments · 223 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
View all

You may also like these posts

ज़रा इतिहास तुम रच दो
ज़रा इतिहास तुम रच दो "
DrLakshman Jha Parimal
उस की आँखें ग़ज़ालों सी थीं - संदीप ठाकुर
उस की आँखें ग़ज़ालों सी थीं - संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur
ਜਿੱਦਾਂ ਦੀ ਮੈਂ ਹਾਂ
ਜਿੱਦਾਂ ਦੀ ਮੈਂ ਹਾਂ
Surinder blackpen
ठहर गया
ठहर गया
sushil sarna
एक अच्छे समाज का निर्माण तब ही हो सकता है
एक अच्छे समाज का निर्माण तब ही हो सकता है
कृष्णकांत गुर्जर
मकर संक्रांति
मकर संक्रांति
पूर्वार्थ
बंद कमरे में
बंद कमरे में
Chitra Bisht
तुझे खो कर तुझे खोजते रहना
तुझे खो कर तुझे खोजते रहना
अर्चना मुकेश मेहता
तेल, तेल से मिलता जल से मेल नही हो सकता,
तेल, तेल से मिलता जल से मेल नही हो सकता,
raijyoti47.
..
..
*प्रणय प्रभात*
स्वयं से बात
स्वयं से बात
Rambali Mishra
*जय केरल (राधेश्यामी छंद)*
*जय केरल (राधेश्यामी छंद)*
Ravi Prakash
मनोबल
मनोबल
Kanchan verma
**ईमान भी बिकता है**
**ईमान भी बिकता है**
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
मैं होता डी एम
मैं होता डी एम"
Satish Srijan
अष्टांग योग
अष्टांग योग
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
अनजान राहें अनजान पथिक
अनजान राहें अनजान पथिक
SATPAL CHAUHAN
शीर्षक - जय पितर देव
शीर्षक - जय पितर देव
Neeraj Kumar Agarwal
ग़ज़ल
ग़ज़ल
आर.एस. 'प्रीतम'
पतंग
पतंग
विशाल शुक्ल
बारम्बार प्रणाम
बारम्बार प्रणाम
Pratibha Pandey
19. कहानी
19. कहानी
Rajeev Dutta
तुमसे मिला बिना
तुमसे मिला बिना
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
नीला ग्रह है बहुत ही खास
नीला ग्रह है बहुत ही खास
Buddha Prakash
नन्हे-मुन्ने हाथों में, कागज की नाव ही बचपन था ।
नन्हे-मुन्ने हाथों में, कागज की नाव ही बचपन था ।
Rituraj shivem verma
ई भारत देश महान हवे
ई भारत देश महान हवे
आकाश महेशपुरी
सबको अपना-अपना आसमान चाहिए
सबको अपना-अपना आसमान चाहिए
Jitendra kumar
ये जो हम सब. द‌बाये रहते हैं कुछ मन के किसी कोने में एक वक्त
ये जो हम सब. द‌बाये रहते हैं कुछ मन के किसी कोने में एक वक्त
पूर्वार्थ देव
विरह
विरह
Shutisha Rajput
हृदय से जो दिया जा सकता है वो हाथ से नहीं और मौन से जो कहा ज
हृदय से जो दिया जा सकता है वो हाथ से नहीं और मौन से जो कहा ज
ललकार भारद्वाज
Loading...