Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
15 Oct 2020 · 1 min read

उल्फ़त में जलता सा इक परवाना लगता है

उल्फ़त में जलता सा इक परवाना लगता है
आहें भरता ठंडी वो दीवाना लगता है

मक़तल में लोगों का जाना आना लगता है
मुश्किल भी क़ातिल का पकड़ा जाना लगता है

तुमको देखा जब से दिल भी अपने पास नहीं
खोए दिल को मुश्किल वापस पाना लगता है

नज़रें झुकती पलकें उसकी लाज से भारी हैं
प्यार हुआ है शायद उसने माना लगता है

रोज़ गले लगकर मिलता रहता वो लोगों से
लोगों की साज़िश से वो अन्जाना लगता है

धनवानों को आज़ादी है मुफ़लिस क़ैदी हैं
दौलत के ढ़ेरों में डूबा थाना लगता है

पंछी क्यूँ आसानी से फंसते हैं जालों में
कारण इसका मुझको आबो-दाना लगता है

इक पल में लगता है जैसे कुछ भी याद नहीं
और कभी इक पल में सब कुछ जाना लगता है

तन्हा ‘आनन्द’ न रहबर है राहें भी भूला
मुश्किल अब तो मुझको मंज़िल पाना लगता है

– डॉ आनन्द किशोर

Loading...