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11 Oct 2020 · 1 min read

उसके जाने का बहुत ही ग़म हुआ

उसके जाने का बहुत ही ग़म हुआ
धड़कनों का रोज़ फिर मातम हुआ

फ़र्क़ नीयत में हुआ दुश्मन की जब
फिर सबक देने का ये मौसम हुआ

वो जियाला चल रहा था आग पर
जो शरारा था वही शबनम हुआ

गोलियाँ दुश्मन की सीने पर चलीं
जोश दिल का पर नहीं कुछ कम हुआ

लोरियाँ तोपों की सुनकर चल पड़े
हौसला जीता यही हरदम हुआ

सैंकड़ों दुश्मन को मारा एक ने
सामने था जो अदू बेदम हुआ

पासबाँ थकते नहीं हैं उम्रभर
हो उजाला दिन का चाहे तम हुआ

होश भी है जान भी है पर है ग़म
आज फिर ‘आनन्द’ यूं पुरनम हुआ

शब्दार्थ:- अदू = दुश्मन, पासबाँ = रक्षक / चौकीदार, तम = अंधेरा, पुरनम = अश्रुपूरित

– डॉ आनन्द किशोर

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