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9 Oct 2020 · 1 min read

देख तूफ़ान डर न जाए कहीं

देख तूफ़ान डर न जाए कहीं
रास्ते में ठहर न जाए कहीं

रहनुमा छोड़कर गया शायद
कारवां अब बिखर न जाए कहीं

सिर्फ़ कमियाँ निकालने में लगे
वक़्त सारा गुज़र न जाए कहीं

संग के साथ रहते – रहते ही
दिल का अहसास मर न जाए कहीं

देख मत उसकी आंख में इतना
फ़िर से दरिया उतर न जाए कहीं

ज़ख़्म छोटा है वार तिरछा है
दर्द सारा उभर न जाए कहीं

छोड़कर जा रहा है मर्ज़ी से
रेज़ा – रेज़ा बिखर न जाए कहीं

छीन लो आइना अभी उससे
मुझसे ज़्यादा संवर न जाए कहीं

उसको ‘आनन्द’ कुछ नहीं कहना
लौटकर आज घर न जाए कहीं

– डॉ आनन्द किशोर

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