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7 Oct 2020 · 1 min read

बरहना लाशें

नाज़ों से पाली हुई
पलकों पे सजने वाली
माँ की परछाईं
बाप की जान
जब टुकड़ो में
उठाई जातीं हैं
या आधी रात
मार कर जला दी जाती हैं
या कुचली मिलती हैं
ईंट पत्थरों से
घोंटी, जलाई, रेती गयीं
डुबोई गयीं
या किसी लुटे पीटे खेत मे वीरान
मैं नहीं जानती
उतना दुःख पहाड़ उठाए
तो ढह
कौन से कलेजे से
बाप समेटते हैं
उनके टुकड़े,
माएँ अपने आँचल से ढकतीं हैं
बरहना लाशें
फिर भी नहीं थमती दरिंदगी
नहीं रुकती वहशतें
बस आँसू सुख जातें हैं
न्याय मांगने वाली आवाज़ें
कुचल दी जातीं हैं
चीखते गुहार लगाते लोग
थक जाते हैं
और फाइलें दबा दी जाती है

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