आज़ाद गज़ल
उम्र भर उनको ये शिकायत हम से रही
आशिक़ी मेरी बुलंद उन के दम से रही ।
बेहद शुक्रगुज़ार हूँ मैं उस नजरें करम की
जिंदगी मेरी गुलजार उनके सितम से रही ।
हक़ीक़त में हिम्मत नहीं थी पास जाने की
ख्वाबों मे तो बहुत मेलजोल सनम से रही ।
कभी दो दिलों को सही से मिलने नही दिया
दुश्मनी जमाने से आशिकों की जनम से रही ।
कभी तो थे वो भी मेहमान मेरी मुफलिसी में
दिल कि महफिल मे रौनक इसी वहम से रही ।
-अजय प्रसाद