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1 Sep 2020 · 1 min read

मन की बात

रवि शंकर साह
किस से कहूं मैं मन की बात।
घर में नहीं चलती अपनी बात।
मंहगाई ने घर का बजट बिगाड़ा
अमीरों का भी निकला कबाड़ा।

बच्चे घर में करते हैं मनमानी ।
मोबाइल से है हम को परेशानी।
बीबी कहती घर में आटा नहीं ।
बच्चे कहते मोबाइल में डाटा नहीं।

हमारे यहां खाने को लाले पड़े है।
गाँव शहर घर घर मे ताले पड़े हैं।
जनता के जेब में पैसा नहीं है।
नेताओं को पैसे की कमी नहीं है।

हम अच्छे दिन के सपने में खोए थे।
आंखों में लाखों सपने संजोए थे।
आँख खुली तो खाने को नहीं निवाले थे।
पुरखों की ही सम्पति ही बिकने वाली थी।

जिसे बोलने की हिम्मत नहीं थी।
वो पड़ोसी भी आँखे दिखा रहा है।
हमारी सीमा पर उधम मचा रहा है।
हमें सीमा विवाद में उलझा रहा है।

अब क्या सुनू मैं मन की बात।
जिसके अंदर नहीं है जज्बात।
जिसने जनता की सुनी नहीं।
वो करता है अपने मन की बात।
◆◆◆
©®रवि शंकर साह
रिखिया रोड़, बलसारा, देवघर।

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 305 Views

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