Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
24 Aug 2020 · 6 min read

किसी से न कहना

छुट्टी वाले दिन मेस में दोपहर को अच्छा खाना मिलता था जिसे हम लोग ठूंस – ठूंस कर खाते थे फिर कुछ घंटे कमरे पर मगरमच्छ की तरह लेट कर आराम करने के बाद दो-चार लोगों की टोली बनाकर या जोड़े से शाम को कुछ गैरजरूरी आवश्यकताएं पूरी करने और अपनी नीरसता दूर भगाने के लिए शहर की ओर चल देते थे । इसमें टोली या जोड़ा बनाने के लिए साथी से दोस्ती , दिल या विचारों का मिलना जरूरी नहीं होता था वरन रास्ते में होने वाले रिक्शे के किराए भाड़े को साझा करने का लालच ज़्यादा होता था । हमारी यह यात्रा शहर पहुंचकर वहां के एक प्रतिष्ठित रेस्तरां गणेश होटल में एक अभ्यास की तरह उसकी पॉट ग्रीन टी पीने के साथ से शुरू होकर सड़क के उस पार सामने स्थित एक स्टेशनरी की दुकान पर कुछ खरीददारी से समाप्त होती थी । और वहां से हम लोग वापस अपने कमरों में आ जाते थे ।
उस दिन हम तीन मित्रों ने सोचा कि कुछ आगे तक चल कर इस शहर की खोज की जाए । लगभग 700 मीटर मुख्य मार्ग पर दूर जाने पर हमें वहां कचहरी परिसर की रेलिंग से सटे फुटपाथ पर कुछ खोखे फड़ आदि लगे दिखाई दिए , यूं ही टहलते हुए हम लोगों की नज़र एक तख्त पर बैठे वृद्ध पर पड़ी जो कि एक बुक स्टॉल सा सजाए बैठा था और उपन्यासों और मनोरंजन की पुरानी नई पत्रिकाओं की बिक्री कर रहा था । हम लोग अनमने भाव से उड़ती हुई नजरों से उसकी किताबों को देख रहे थे , तभी हमारी नज़र मनोहर कहानियां ,सत्य कथा आदि से होती हुई आज़ाद लोक , अंगड़ाई जैसी पत्रिकाओं से सरकती हुई उससे भी घटिया स्तर की कुछ पत्रिकाओं पर पड़ी , जिन्हें देखकर हमें ऐसा लगा कि शायद यह वही हॉस्टल का लोकप्रिय बहु चर्चित साहित्य है जो हॉस्टल में जिसके पास होता है उसे लोग ज्यादा ह**** समझते हैं और उसकी कद्र और लोगों से ज्यादा होती है । जिसका पठन कुछ लोग चोरी-छिपे बंद कमरे में तो कभी जिसका पाठन कुछ लोग सामूहिक रूप से उच्च स्वरों में लॉबी में करते पाए जाते हैं । अतः हम लोगों ने भी सब पर अपनी धाक जमाने के लिए उस वृद्ध से उस पत्रिका की और इशारे से पूछा
यह किताब कितने की है ?
उसने उस वृद्ध ने अपनी पैनी , तीखी , पारखी नज़रों से हमारा एक्स-रे सा करते हुए हमारे प्रश्न के उत्तर में हमसे एक और प्रश्न दाग दिया
आप डॉक्टर हो ? मेडिकल कॉलेज में पढ़ते हो ?
हमने लोगों ने सगर्व कहा
हां ।
फिर वह वृद्ध हमारे चेहरों की ओर हाथ नचाते हुए बोला
‘ हजूर आप लोग तो रोज़ाना ही यह देखते होंगे फिर इस किताब को लेकर क्या करेंगे ?
हम लोगों ने बिना एक दूसरे की ओर देखे , बिना एक दूसरे से कोई राय लिए , तुरंत वहां से पलट लिए और करीब 300 मीटर दूरी तक बिना पीछे मुड़ कर देखे खामोशी से तेज चाल में चलते हुए जाकर रुके । हमारा मन किया कि कल उस वृद्ध को अपने शवों के विच्छेदन कक्ष में बुलाकर सुभराती से यह कहकर मिलवा दें कि जरा इन्हें यहां पड़े चिरे फ़टे मुर्दों , एनाटॉमी के संग्रहालय में फॉर्मलीन के जारो में बंद विच्छेदित अंगों , लटके मानव कंकालों और बिखरी हड्डियों आदि को सब घूम घूम कर दिखा दो जो हम यहां रोज़ ही देखते हैं , तुम भी यह नजारा देख कर अपना शौक पूरा कर लो । पर यह हो न सका , फिर सीधा हम लोग हॉस्टल आ गए उस दिन हम लोगों ने मन ही मन फैसला किया
कि अब हमें यह किसी से ना कहना है कि हम डॉक्टर हैं ।
*********************
इसी प्रकार एक बार मैं अपने अपने घर से बार-बार प्राप्त होने वाले निर्देशों को पालन करने के लिए अपने ( लोकल गार्जियन ) स्थानीय संरक्षण कर्ता जिनका पता ऐडमिशन फॉर्म के कॉलम को भरने के निमित्त प्रयोग में लाया जाता है के घर में दोपहर को पहुंच गया , उस समय हमारी संरक्षिका घर पर अकेले थीं उन्होंने मुझे सेब काट कर खिलाया और फिर कुछ बातों के बाद वो फ्रिज में से एक प्लेट में कुछ लगे लगाए पान लेकर आ गईं और एक पान मेरी और बढ़ाते हुए कहा
लीजिए
और फिर कुछ झिझक एवं संकोच के साथ खिलखिला कर पान मेरे मुंह से करीब 10 इंच की दूरी तक ला कर अपना हाथ वापस खींच लिया और उसे अपने मुंह में डालकर चबाने लगीं तथा मुंह में पान की गिलौरी या चाशनी समेत रसगुल्ला रखने के पश्चात इंसान जिस तरह के उच्चारण और भाव – भंगिमा चेहरे पर ला कर बोलता है , हंस कर बोलीं
‘ अरे आप कैसे खाएंगे आप तो डॉक्टर हैं ‘
शायद उस दिन मुझे उनके बारे में यह बात अच्छी तरह से नहीं पता थी कि मेरे द्वारा जिये गये पिछले शहर में वे हमारी ही कॉलोनी में कोने वाले मकान में रहती थीं एवं वे अपने पति की दूसरी पत्नी थीं , तथा अपने तत्कालीन पति से उम्र में करीब 20 – 25 वर्ष छोटी थीं । उस शहर में भी कॉलोनी में उनके चर्चे मशहूर थे जिनका जिक्र मैं यदि अभी यहां करने लगा तो अपनी विषय वस्तु से भटक जाऊंगा ।
उस दिन फिर मैंने सोचा आगे से अब मुझे किसी से ना कहना होगा कि मैं डॉक्टर हूं ।
********************
हमारे मेडिसिन विभाग के एक प्रोफेसर साहब थे जिन्हें ओपीडी में एक लाला जी अक्सर दिखाने आया करते थे और बात बात में उन्हें यह कह कर ताना देते थे कि
अरे आपका क्या है डॉक्टर साहब आप तो डॉक्टर हैं और आपकी पत्नी भी डॉक्टर हैं । आप भी कमाते हैं और वे भी कमाती हैं । हर बार हमारे प्यारे सर जिन पर हम सब गर्व करते थे खामोशी से मुंह में पान मसाला भरे मुस्कुराकर उन लालाजी की बात को टाल जाया करते थे पर एक दिन जब मैं बाहैसियत इंटर्न बना उनकी मेज़ के कोने पर बैठा दवाइयों की पर्ची बना रहा था , लालाजी ने जब यह डायलॉग मारा तो सर ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया
‘ अरे इसमें क्या है लाला जी हम डॉक्टर हैं हमारी बीवी भी डॉक्टर है हम कमा सकते हैं हमारी बीवी भी कमा सकती है । लालाजी आप भी कमा रहे हैं आपकी बीवी भी कमा सकती हैं , कमवाइये , इसमें क्या है ? ‘
उस दिन सर की बात में छुपी सर की पीड़ा मुझे उतनी नहीं समझ में आई जितनी कि आज मैं महसूस कर सकता हूं । मेरा श्रद्धा से नमन है उनके धैर्य और उनकी इस व्यतुतपन्न व्यंग्यात्मक तार्किक क्षमता पर।
**************
हमारे जमाने की पुरानी फिल्मों में किसी प्रेम त्रिकोण कहानी के क्लाइमैक्स के दृश्य में प्रेम कहानी की प्रधान नायिका , नायक से अपनी सौतन के बारे में ईर्ष्या से चीखते हुए और सामने से झुक झुक कर अपने सीने पर से पल्लू को दर्शकों की ओर गिराते हुए हीरो को शर्मिंदा करते हुए हुए डायलॉग मारा करती थी
‘ उस औरत में तुमने ऐसा क्या देखा जो मेरे पास नहीं है , तो फिर क्यों तुम मुझसे इतनी नफरत करते हो ? ‘
उसी प्रकार मेरा भी मन करता है कि आज मैं भी चीख – चीख कर उस किताब वाले , उन अपनी लोकल गार्जियन और चिकित्सकों के प्रति इस समाज के पूर्वाग्रह से ग्रसित लोगों से कह डालूं
‘ आखिर हम चिकित्सकों में ऐसा क्या भिन्न है जो और इंसानो में नहीं है तो फिर क्यों तुम लोग बार-बार डॉक्टरों के प्रति यह भिन्न पूर्वाग्रह से ग्रसित अपना यह व्यवहार दर्शाते एवं अपनाते हो ।’
फिलहाल अब तो अपनी जिंदगी से मिले अनुभवों के आधार पर मैंने यह जाना है कि जहां मैंने या किसी अन्य चिकित्सक ने किसी मेले , ठेले , यात्रा में रेलगाड़ी बस या किसी गोष्ठी में अपने परिचय में यह बताया कि मैं डॉक्टर हूं तो उनमें से कुछ लोग हाथ धोकर डॉक्टरों के पीछे पड़ जाते हैं और बाकी समय लोगों से डॉक्टरों की बुराई और उन पर लानत पड़वाने में गुजर जाता है ।
ऐसा प्रतीत होता है जहां पर विज्ञान का अंत होता है वहां से लोगों का विश्वास आरम्भ होता है , और मरीज़ का अपने चिकित्सक पर किया गया यही विश्वास उसके लिये फलदायी होता है । सम्भवतः अपने चिकित्सक पर किया गया यही भरोसा रोगी की रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता का विकास ( immune booster ) करने का कार्य करता है ।
संस्कृत में कहा गया है
‘ विश्वासम फलदायकम ‘
अंग्रेज़ी में किसी पुराने महान विद्वान दार्शनिक और चिकित्सक का मत है
‘ your faith in me helps you heal faster ‘
मगर अब हाल यह है कि अगर कहीं कोई मुझसे मेरा परिचय पूंछता भी है तो मुझे हर पल यह भय रहता है कि अपने परिचय में कहीं भूल कर भी मुझे यह
किसी से ना कहना है कि ———— मैं डॉक्टर हूं ।

Language: Hindi
Tag: लेख
4 Likes · 1401 Views

You may also like these posts

व्यावहारिक सत्य
व्यावहारिक सत्य
Shyam Sundar Subramanian
सत्य यह भी
सत्य यह भी
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
इश्क़ लिखने पढ़ने में उलझ गया,
इश्क़ लिखने पढ़ने में उलझ गया,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
मैं रूठूं तो मनाना जानता है
मैं रूठूं तो मनाना जानता है
Monika Arora
आ फिर लौट चलें
आ फिर लौट चलें
Jai Prakash Srivastav
समस्याओं के स्थान पर समाधान पर अधिक चिंतन होना चाहिए,क्योंकि
समस्याओं के स्थान पर समाधान पर अधिक चिंतन होना चाहिए,क्योंकि
Deepesh purohit
इश्क तो बेकिमती और बेरोजगार रहेगा,इस दिल के बाजार में, यूं ह
इश्क तो बेकिमती और बेरोजगार रहेगा,इस दिल के बाजार में, यूं ह
पूर्वार्थ
#वी वाँट हिंदी
#वी वाँट हिंदी
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
संतानों का दोष नहीं है
संतानों का दोष नहीं है
Suryakant Dwivedi
"यादें और मैं"
Neeraj kumar Soni
#Secial_story
#Secial_story
*प्रणय*
🌹🌹🌹शुभ दिवाली🌹🌹🌹
🌹🌹🌹शुभ दिवाली🌹🌹🌹
umesh mehra
आक्रोष
आक्रोष
Aman Sinha
ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਦੇ ਗਲਿਆਰੇ
ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਦੇ ਗਲਿਆਰੇ
Surinder blackpen
मैं तो हमेशा बस मुस्कुरा के चलता हूॅ॑
मैं तो हमेशा बस मुस्कुरा के चलता हूॅ॑
VINOD CHAUHAN
जज्बे से मिली जीत की राह....
जज्बे से मिली जीत की राह....
Nasib Sabharwal
दोहा पंचक. . . नववर्ष
दोहा पंचक. . . नववर्ष
Sushil Sarna
" वोट "
Dr. Kishan tandon kranti
श्याम दिलबर बना जब से
श्याम दिलबर बना जब से
Khaimsingh Saini
मुझे उड़ना है
मुझे उड़ना है
सोनू हंस
राम
राम
Mamta Rani
आज कल...…... एक सच
आज कल...…... एक सच
Neeraj Agarwal
প্রতিদিন আমরা নতুন কিছু না কিছু শিখি
প্রতিদিন আমরা নতুন কিছু না কিছু শিখি
Arghyadeep Chakraborty
' क्या गीत पुराने गा सकती हूँ?'
' क्या गीत पुराने गा सकती हूँ?'
सुरेखा कादियान 'सृजना'
भँवर में जब कभी भी सामना मझदार का होना
भँवर में जब कभी भी सामना मझदार का होना
अंसार एटवी
आज का इंसान खुद के दुख से नहीं
आज का इंसान खुद के दुख से नहीं
Ranjeet kumar patre
राजासाहब सुयशचरितम्
राजासाहब सुयशचरितम्
Rj Anand Prajapati
वक्त की कहानी भारतीय साहित्य में एक अमर कहानी है। यह कहानी प
वक्त की कहानी भारतीय साहित्य में एक अमर कहानी है। यह कहानी प
कार्तिक नितिन शर्मा
नहीं है
नहीं है
Arvind trivedi
3019.*पूर्णिका*
3019.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
Loading...