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20 Aug 2020 · 1 min read

दहाड़े मार कर रोना चाहती हॅं

दहाड़े मार कर रोना चाहती हॅं
देखो तो जां मैं ए क्या चाहती हॅं !

बड़ी उलझी उलझन सी रहती है
मन के गांठों को खुलवाना चाहती हूॅं !

रात के सिरहाने गिलाफ पे अपने
चाॅंद को चमकता देखना चाहती हूॅं !

मैं शब भर तेरे सीने के नर्म बालों को
आंसुओं से अपने भिगोना चाहती हूॅं !

~ सीद्धार्थ

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