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16 Aug 2020 · 1 min read

हो गये हैं......

मुजरिमों के मार्गदर्शक, मित्र, थाने हो गये हैं।
इसलिए ही जुर्म के मौसम सुहाने हो गये हैं।।

काटनी है जिंदगी उनको सजा के रूप में अब।
स्वर्ग में तब्दील सारे कैदखाने हो गये हैं।।

आज फिर हाँडी के मन में है कबूतर को पकाए।
आज फिर से छत पे उसकी दाने दाने हो गये हैं।।

कत्ल मानवता का करने को नये हथियार लाओ।
धर्म मजहब जाति सब के सब पुराने हो गये हैं।।

देर कुछ ज्यादा ही करदी आपने आने में, अब तो।
बेबसी गम दर्द के दिल में ठिकाने हो गये हैं।।

प्रदीप कुमार “दीप”
सुजातपुर, सम्भल

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