हमारा बचपन
झूठ बोलते थे फिर भी कितने सच्चे थे हम,
ये उन दिनों की बात है जब बच्चे थे हम..!
बचपन वाला इतवार अब आता नही,
गांवो में अब वो खेल दिखता नहीं…!!
कितने खूबसूरत होते थे वो खेल जब,
सारे दोस्त इकट्ठा होकर वो पुराने पीपल के पेड़ के छाँव में शोरगुल मचाते थे..!
कैसा यह बेरंगीन जमाना आया है,
आजकल के बच्चे अपने आप में मोबाइलों में खोया हुआ रहता है…!!
अब तो वो बचपन वाली शाम होती नही,
अब वो पीपल के पेड़ो में चिड़ियों की चहचहाने की आवाज़ आती नहीं..!
न जाने वो बचपन के साथ वो चिड़िया भी कहाँ चली गई,
अब तो वह चिड़िया भी पेड़ों में कही दिखती नही …!!
झूठ बोलते थे फिर भी कितने सच्चे थे हम,
ये उन दिनों की बात है जब बच्चे थे हम..!
आज हर वक़्त बस बचपन का याद आता है,
दोस्तों के साथ वो खिलखिलाना, लड़ना, रूठना और पल भर में मनाना याद आता है…!!
आज वैसी कुछ गांवों में हलचल दिखती नहीं,
बच्चों की टोली और पुरानी पीपल के पेड़ के छाँव में वो मस्ती आज मिलती नहीं…!
बचपन वाला इतवार अब आता नही,
गांवो में अब वो खेल दिखता नहीं…!!
✍️ उज्ज्वल दास
(बोकारो स्टील सिटी – झारखंड)