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2 Aug 2020 · 1 min read

मेरा खुला है द्वार

थकित नयनों से रही में निर्निमेष निहार ।
वापसी का आज भी मेरा खुला है द्वार ।।

धेनु गोकुल की पुकारे श्याम घन को
साथ जाना चाहती फिर मधुवन को
करुण स्वर से अश्रुपूरित कर रही मनुहार ।
वापसी का आज भी मेरा खुला है द्वार ।।

धूलि चढ़कर गगन से नित देखती है
गीत आँचल में उठाकर लेखती है
निराशा से लौटती है व्यथित कई कई बार ।
वापसी का आज भी मेरा खुला है द्वार ।।

यमुना अपने नीर से विरही कवि सी
काव्य गुंजन कर रही टूटी छवि सी
प्रतीक्षा की लहर जाती तटों के उस पार ।
वापसी का आज भी मेरा खुला है द्वार ।।

वन की हिरनी वंशी सुनने को विकल
भ्रमर सुमन लता विटप गोपी सकल
मन की वीणा शोक से झंकृत करे न तार ।
वापसी का आज भी मेरा खुला है द्वार ।।

राधिका मूरत सरीखी शान्त सी
टुक अचंचल श्रान्त और क्लान्त सी
भाव भक्ति का भरा मन प्रीत से दो चार ।
वापसी का आज भी मेरा खुला है द्वार ।।

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