Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
1 Aug 2020 · 1 min read

ग़रीबी की शाम(ईदमुबारक)

काश हमारी ग़रीबी की शाम भी क़रीब हो जाए,

कपड़े, मकाँ न मिलें पर रोटी तो नसीब हो जाए ।।

कि मोहब्बत से जो देखने लगे हर इंसाँ, इंसाँ को,

तो हर इक शख़्स की भी क्या ख़ूब ईद हो जाए ।।

#हनीफ़_शिकोहाबादी✍️

Loading...