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26 Jul 2020 · 2 min read

गॉथम इज़ बौलिंग

उन दिनों आज की तरह हर घर मे टेलीविजन तो होते नहीं थे। गांव में इक्का दुक्का अमीर घरों में ही ये सुविधा थी, छत पर लगा उसका एन्टेना छोटे मोटे हवाई जहाज़ सा दिखता था।

खेलकूद की जानकारी के लिए रेडियो ही एक मात्र साधन था। घर के बाहर लगी खाट पर हम पांच छह लोग रेडियो पर कान लगाए भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहा टेस्ट मैच सुन रहे थे , बीच बीच में अपनी प्रतिक्रिया और विशेषज्ञों की भांति अपनी राय भी रख रहे थे। अपने पसंदीदा खिलाड़ियों में कौन किससे बेहतर है, पर छोटी मोटी बहस भी चल रही थी।

इतने में एक सीधा साधा आदमी जो किसी आसपास के छोटे से देहात का रहा होगा, पास आकर खड़ा हो गया। कॉमेंटेटर की बातें उसके कम ही पल्ले पड़ रही थी। उसने कई सालों के बाद फिर से किसी मैच की कॉमेंट्री सुनी थी आज या फिर, किसी खिलाड़ी का नाम कहीं से सुन रखा होगा।

थोड़ी देर बाद उसने बड़े भोलेपन से पूछा,

“देबी आउट हो गया क्या?”

पहले तो हम उसकी बात पर चौंके, फिर किसी को समझ में आया कि शायद ‘बिशन सिंह बेदी” के बारे में पूछ रहा है, जो एक दो साल पहले ही खेल से अवकाश ले चुके थे।

हमने उससे थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा कि,हाँ वो आउट हो गए हैं। भोला भाला आदमी दुःखी होकर चला गया।

ऐसे ही इंग्लैंड और भारत के मैच के दौरान, मैं और मेरे मझले भाई शाम को किसी काम से निकले थे। भारत की टीम इंग्लैंड गयी हुई थी।

रास्ते में दो लोग साईकल खड़ी करके रेडियो को कान से लगाए मैच को सुन रहे थे। टोनी कोजियर या सुरेश सरैया रहे होंगे, अंग्रेज़ी में आंखों देखा हाल सुना रहे थे।

मैं तो खैर छोटा था, मुझे इतनी जानकारी नहीं थी। भाई और मैं ,उनकी बगल मे जाकर खड़े हो गए। भाई ने हिंदी मे पूछ लिया, गेंद कौन कर रहा है?

उन दोनों ने हमको सर से लेकर पांव तक एक बार घूर कर देखा, हमारे सामान्य ज्ञान का जायजा ले रहे हों शायद!!!

फिर बड़े ही ठंडे स्वरों मे जवाब दिया, ” गॉथम इज़ बौलिंग”। ये कहकर, वो फिर आंखों देखा हाल सुनने में व्यस्त हो गए। ये भी जता दिया कि और मत पूछना बस।

इशारा समझ कर हमने वहां से चले जाना ही बेहतर समझा। रास्ते में भाई ने मुझे बताया कि वो दोनों बेवकूफ “इयान बॉथम” की बात कर रहे थे।

सीमित जानकारी का दंभ हमारे शिष्टाचार को किस तरह प्रभावित कर देता है कभी कभी!!!

मैंने भाई से पूछा, आपने उनको सही क्यों नहीं किया। वो मुस्कुरा उठे, शायद कह रहे थे खुद की गलतफहमी खुद से ही बेहतर दूर होती है, थोड़ी मेहनत उन्हें भी करने दो, और ये भी बिना कहे समझा गए कि खुद को बेहतर साबित करना जरूरी नहीं होता है!!!!

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