तिरंगा है
देखता हूँ भूखा हैऔर नंगा है
मगर हाथों में लिये तिरंगा है ।
हक़ उसे है जश्ने-आज़ादी का
क्या हुआ अगर भिखमंगा है ।
देशभक्ति उसकी रग रग में है
जैसे वो जल पवित्र गंगा है ।
फ़िक्र वो भी करता है देश की
लेता रोज़ वो गरीबी से पंगा है ।
मैला है तन से मन में मैल नहीं
यारों जैसे कठौती में गंगा है ।
-अजय प्रसाद