अरेऊआ – परेऊआ
लघु लोककथा
एक राजा था अपनी रानी और प्रजा के साथ खुशहाल जीवन जी रहा था राज्य में एक नदी थी सदियों से नदी के उस पार जाने की इजाज़त नही थी कहते थे कि उस पार दो जादूगरनी बहने रहती हैं जो उस पार गया वो अपने घर वापस नही लौट पायेगा… लेकिन ये क्या इधर तो राजा ही नदी के उस पार जाने के लिए लालायित हो चुका था राजा ने सोचा मैं तो राजा हूँ मेरा कोई क्या बिगाड़ सकता है मेरे जितना कोई वीर नही मेरे उपर किसी का जादू नही चल सकता ये सोचते – सोचते राजा नदी पार कर चुका था , राजा ने देखा दो लड़कियाँ उसकी तरफ दौड़ती चली आ रही हैं राजा के पास आते ही लड़कियाँ आपस में जोर – जोर से बोलने लगीं…अरे ! बहिन रजवा त थक गया है चलो इसको स्नान कराया जाय थोड़ी ही देर में राजा तरोताज़ा होकर जलपान करने में व्यस्त थे और हों भी क्यों ना लग रहा था जैसे दस – बारह रसोईयों ने दुनियाभर के स्वादिष्ट व्यंजनों को बड़े दिल से परोसा हो लेकिन वहाँ दो बहनों के अलावा और कोई नज़र नही आ रहा था राम जाने कहाँ छिपा रखा था सबको ? सब कुछ भूल राजा अपनी आवभगत में मगन दोनों बहन के साथ जीवन का आनंद लेने लगे…दोनों बहने राजा को एक पल के लिए भी अकेला नही छोड़तीं कभी खेल खेलती कभी कहाँनिया सुनाती उधर राजा के बिना प्रजा और रानी का रो – रो कर बुरा हाल इधर राजा उन सबसे बेखबर दोनों बहनो में मगन थे ।
बहुत दिन बीत गए बहनें राजा की तरफ से निश्चिंत हो गई थी इसी निश्चिंतता में एक दिन राजा कुछ पल के लिये अकेले रह गए लगा जैसे वो नींद से जगे हों उन्होंने देखा की वो तो जादूगरनी बहनों के चंगुल में हैं राजा तो राजा ठहरे तुरंत जुगत लगाई जैसे ही बहने आयीं राजा ने उनसे पूछा की तुम दौनों ने कभी झूला झूला है ? दोनो बहनों की गर्दन ना में हिलते ही राजा बोले चलो झूला बनाते हैं बहने तैयार हो गई राजा खड़े होकर आदेश देते जाते बहने पालन करती जाती…झूला बन कर तैयार और बहनें थक कर तभी राजा बोले अब तुम दोनों को मैं झूला झूलाता हूँ बहनें बोलीं आज बहुत थक गये हैं कल झूलेगें राजा बोले झूलने से थकान उतर जायेगी बहने राजा की बातों में आ गई… राजा खूब जोर जोर से धक्का दने लगे बहनें झूला झूलने में होश खो बैठी जब होश आया तो राजा आधी से ज्यादा नदी पार कर चुके थे वो राजा की तरफ दौड़ीं
अरे ! बहिन ई रजवा क जूता…ई रजवा क हार… ई रजवा क तलवार ये कहते ही जैसे गर्दन उपर उठाई राजा नदी पार कर चुके थे नदी के इस पार बहनो का जादू नाकाम था उस पार दोनो बहनें अपने बाल नोच रही थीं और इस पार राजा चैन की साँस ले रहे थे ।
महल पहुँचते ही राजा ने सबसे पहले शिला – लेख खुदवाने का आदेश दिया शिला – लेख पर यह लिखा जाना था ” अरेऊआ – परेऊआ कोई जादूगरनी नही हैं ये तो बस अपने अंदर की लालच और हवस है जो हमको अपने वश में करती है ” शिला – लेख नदी के किनारे लगा दिया गया आज भी जिसने ” अरेऊआ – परेऊआ ” पर विजय पा ली वो अपने घर लौट आया जिसने नही पायी वो ” अरेऊआ – परेऊआ के भँवर – जाल में फस कर कभी अपने घर वापस नही लौट पाया ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 26/10/18 )