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28 Jun 2020 · 1 min read

~~◆◆{{पल दो पल}}◆◆~~

पल दो पल के आशियाने हैं,
फिर युगों युगों तक कब्र से याराने हैं।

हर कोई फिरता किराए की सांसे लिए,चार दिन के तो जिस्म के शामियाने हैं।

दुख तकलीफ में है जो मायूस बैठा, नहीं समझता चिता और चिंता के एक ही तैखाने हैं।

कितना भी निभाता चल वफादारी खून के रिश्तों में,तेरे सारे हक़ अपनों ने ही जलाने हैं।

अपनी ही ज़िद में इंसान चल रहा,वक़्त ने भी कहाँ रोज तेरे किस्से सुनाने हैं।

ये दुनिया बोल बोलती है मतलब के अमन,यहाँ सबने ही अपने अपने घर बनाने हैं।

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