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17 Jun 2020 · 1 min read

"टूटते एहसास"

“टूटते एहसास”

असत्य पे सत्य की जीत चाहिए ,
अधर्म पे धर्म की जीत चाहिए ।

हिंसा पे अहिंसा की जीत चाहिए,
पाप-पुण्य का लेख चाहिए ।

घर-घर में है बैठा रावण ,
अब हर घर में एक राम चाहिए ।

ना रंग रूप ना भेष-भूषा,
कर सके पहचान वो आंख चाहिए ।

शोषित अब हर नर- नारी ,
दे सके सम्मान वो समाज चाहिए ।

घर-घर में है बैठा रावण,
अब हर घर में एक राम चाहिए ।

दरकते अब रिश्ते -परिवार,
ला सके विश्वास वो एहसास चाहिए ।

लुटती अबला घर कभी बाहर,
कर सके इंसाफ वो इंसान चाहिए ।

घर – घर में है बैठा रावण,
अब हर घर में एक राम चाहिए ।

भ्रष्टाचार शोषण अत्याचार का संघार,
कर सके जो सरकार चाहिए ।

गरीबी बन गई अभिषाप,
मिटा सके इस पाप को जो तलवार चाहिए ।

घर – घर में है बैठा रावण,
अब हर घर में एक राम चाहिए ।

जाति पाती रूढ़ि आडम्बर,
पाखंड खण्ड कर सके वो ज्ञान चाहिए ।

अमृषा चोरी हत्या पाप मिटाकर,
रामराज ला सके जो राम चाहिए ।

घर – घर में है बैठा रावण,
अब हर घर में एक राम चाहिए ।

“”””””””””””सत्येन्द्र प्रसाद साह (सत्येन्द्र बिहारी)””””””””””””

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