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19 May 2020 · 1 min read

इस्लाम में थोड़े मंसूर होते

दूर तुम भी न होते न हम दूर होते।
इश्क में क्यों भला आज मजबूर होते।।

महफिलों से निकाला न जाता कभी मै ।
फैसले हर तरह के जो मंजूर होते।।

झूठ को भी मुहब्बत जो मिल जाती उसकी।
तो हमारी तरह तुम भी मशहूर होते।।

आज इस्लाम इतना न बदनाम होता।
गर जमातों में थोड़े से मंसूर होते।।

#मंसूर जिसे इस्लामिक धर्मगुरुओं के कहने पर नवाब ने पत्थर मारकर मारने की आज्ञा दी।

कवि गोपाल पाठक “कृष्णा”
बरेली,उप्र

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