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11 May 2020 · 1 min read

गर्मी के मेघ

उमड़ घुमड़ कर मेघ गरजते रहते हैं ।
जाने कौन कि वो हमसे क्या कहते हैं ।।

भूल गए क्या यह गर्मी का मौसम है ।
इसमें पानी नहीं , पसीने बहते हैं ।।

कुछ तो रहम करो, मई का महीना है ।
इसमें सूरज तपकर सबको दहते हैं ।।

घोर वृष्टि सावन भादों के महीने में ।
बड़े बड़े पर्वत नदियों में ढहते हैं ।।

हो आकाश विहारी तुम ये क्या जानो ।
लोग धरा पर क्या क्या संकट सहते हैं ।।

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