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15 Apr 2020 · 1 min read

च़ंद अल्फ़ाज़

ग़ैरों को आईना दिखाने वालों ने शायद अपना चेहरा आईने में देखना छोड़ दिया है।

जज्ब़ात की ऱौ मैं वो इस क़दर बह गए के क्या ग़लत क्या सही ये पहचानना भूल गए।

दोस्तों से दुश्म़न बेहतर हैं जो भरोसे में रखकर छुप कर तो वार नहीं करते।

आजकल मुझे इंसानों में इंसानिय़त के बजाय जानवरों में इंसानिय़त नज़र आने लगी है।

ये व़क्त का तकाज़ा है या क़ुदरत का अस़र मुझे हर तरफ़ दिम़ागी ग़ुलाम नज़र आने लगे हैं।

उस इल्म़ का क्या फायदा जो सिर्फ़ किताबों में क़ैद होकर रह जाए।

Language: Hindi
6 Likes · 4 Comments · 563 Views
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