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19 Mar 2020 · 8 min read

“लड़कपन का प्यार निभाना तो है”

जी हाँ दोस्‍तों ज़िन्दगी के इस सफर में कॉलेज में प्रवेश के समय अधिकांश लोग इस लड़कपन के प्‍यार से गुज़रते हैं। जो प्‍यार को महसूस करते हैं, वे पूर्णत: निभाते हैं। जो इस प्‍यार को तो सिर्फ़ हँसी-ठिठोली समझते हैं, वह तो दिलों में दफन हो जाता है और मजबूरन उनको भुलाना पड़ता है। लड़कपन का पहला प्‍यार होता सबको है पर कुछ ही लोग निभा पाते हैं।

आज मैं आपको ऐसे ही लड़कपन के प्‍यार की कहानी सुनाने जा रही हूँ। जिस दौर में कहानी के नायक और नायिका को लड़कपन में प्‍यार तो हो जाता है! पर वही प्‍यार को निभाने की बारी आती है, तब उनकी हंसी-ठिठोली का प्यार धरा रह जाता है और वास्‍तविक प्रेम की जागृति होती है। इस उम्र में इश्‍क हर किसी को होता है, फर्क सिर्फ़ इतना है कि कुछ लोग जिसे चाहते हैं, उसे पा लेते हैं। और बाकी खो देते हैं या विवश होकर भूल जाते हैं।

वैसे भी कहा जाता है कि जोड़ियाँ तो ईश्‍वर बनाकर ही भेजते हैं| मगर यदि इस लड़कपन के प्‍यार को निभाना चाहे और परिवार वाले भी हों राजी तो सोने पे सुहागा।

मीता ने कॉलेज में बी.कॉम. प्रथम वर्ष के लिये ही हंसराज कॉलेज दिल्‍ली में प्रवेश लिया है, जिसकी गिनती कॉमर्स के सबसे अच्‍छे कॉलेज में होती है और वह माँ के साथ आती है कॉलेज में पहले दिन। “उसकी माँ मुबई में कोर्ट में नौकरी करती है, वह कॉलेज के प्राचार्यजी से मिलने और मीता के कॉलेज में प्रवेश सम्बंधी एवं होस्‍टल में रहने की सारी औपचारिकताओं को पूर्ण करने आई हैं।”

कॉलेज की वार्डन के साथ माँ-बेटी कमरा देखने जा रही होती हैं, तभी सीमा लहरा के आते हुए। हाय! …मैं सीमा तुम्‍हारा नाम? कुछ सहमे हुए मीता। पहले चाचाजी के यहाँ सरकारी स्‍कूल में पढ़ी हुई मीता क्‍या जाने? ये शहर के कॉलेजों के छात्र-छात्राओं के लड़कपन की इन अदाओं को!

अच्‍छा तुम भी इसी होस्‍टल में ही रह रही हो क्‍या सीमा? ये मेरी माँ हैं, जिसकी वज़ह से मैं यहाँ तक पहुँच पाई हूँ। अरे माफी चाहुँगी आंटीजी नमस्‍ते। “आप किसी प्रकार की चिंता न करें, यह होस्‍टल बहुत अच्‍छा है, हम सब साथ में ही रहेंगे।” फिर माँ को दोनों छोड़कर आती हैं।

हमेशा मीता ऐसे ही थोड़ी डरी एवं सहमी हुई-सी रहती। पिताजी के जल्‍दी गुजरने के बाद बचपन से माँ ने ही सभ्‍य संस्‍कृति के साथ परवरिश की है और कॉलेज का ऐसा माहौल पहली बार ही देखती है। इतने में सीमा आती है “अरे मीता अब तो खुलकर हँसो-बोलो यार, क्‍या तेरे चेहरे की हवाइयाँ ही उड़ी रहती है हमेशा।” ये कॉलेज है यार कॉलेज। ये ज़िन्दगी भी खुलकर जीना चाहिये, कल हम कॉलेज जाएँगे साथ में। नए दोस्‍तों से जान-पहचान होगी, वहाँ लड़के-लड़कियाँ दोनों ही होंगे, ये झिझक छोड़कर अपने मन की बातें साझा कर, हँस बोलकर मन हल्‍का कर, नहीं तो कल उन लोगों से कैसे मिलेगी? ये तो लड़कपन है, अभी से ऐसी गुमसुम रहेगी तो आगे कैसे करोगी? इस लड़कपन के दौर में तो मस्‍त हवा के झोकों के साथ आने वाली बहारों का आनंद लेना चाहिए।

अरे सीमा तुम्‍हारा कहना तो सही है, पर इस लड़कपन में भी हमें हमारे संस्‍कारों को कभी नहीं भूलना चाहिए। “क्‍या यार मीता तुमने इतना गंभीरता से लिया मेरी बातों को, अरे ये लड़कपन है और कॉलेज में सभी हम-उम्र रहेंगे हम तो।” न जाने किस पल किससे किसी को प्‍यार हो जाए। पर मीता कहती है, “इस उम्र में किसी को भी ऊपरी आकर्षण से प्‍यार नहीं करना चाहिए। कभी भी, करना है तो दिल से चाहो और साथ ही निभाओ भी।”

दूसरे ही दिन मीता, सीमा संग कॉलेज जाने के लिए तैयार। सीमा कहती है थोड़ा होशियार रहना पड़ेगा आज पहला दिन है न कॉलेज का और कभी-कभी रैगिंग भी हो जाती है। “सब दोस्‍तों से मिलना-जुलना होता है और शिक्षकों के साथ भी सभी का परिचय होता है।”

आज पहला दिन होने के कारण पूरे पीरियड़्स पढ़ाई नहीं होने के कारण मीता और सीमा होस्‍टल वापस आ रहीं होती हैं, तभी विक्रम अपने दोस्‍तों के साथ कार में वहाँ आ जाता है, आपस में अठखेलियाँ करते हुए और उनको देखकर उन पर छींटा-कशीं करता है। “…कुछ लोग तो कॉलेज सिर्फ़ पढ़ने मतलब पढ़ने ही आते हैं।”

विक्रम गाँव में वरिष्‍ठ जमींदार का बेटा, जिसे गाँव से शहर में आगे की पढ़ाई हेतु भेजा गया है, क्‍योंकि “उसे ज़मीदारी नहीं करनी थी, सो बी.कॉम. की पढ़ाई के लिये आया है पर लक्षण वही लाटसाहबों जैसे और बड़े ही ठाट से हुई परवरिश।” अपने पिताजी की तरह नवाबों की तरह अकड़। विक्रम की माँ के लाख समझाने के बावजूद भी वह नासमझ ही रहा और गाँव में रहकर सुधरेगा नहीं करके उसे शहर भेजा जाता है आगे के अध्‍ययन के लिए।

फिर धीरे-धीरे कॉलेज की नियमित पढ़ाई शुरू हो जाती है और समय के साथ प्रोजेक्‍ट कक्षाएँ और मीता का पूरा ध्‍यान अपने अध्‍ययन की ओर ही रहता है। बाकी कॉलेज के कुछ छात्र-छात्राओं का ध्‍यान मौज-मस्‍ती और कुछ का ही नियमित रूप से अध्‍ययन की ओर रहता। फर्स्ट टर्म की परीक्षाएँ समाप्‍त होने को थी और सभी को इंतजार था कॉलेज के वार्षिकोत्‍सव कार्यक्रम का।

इसी बीच सीमा को मटर-गश्ती बहुत पसंद रहती है और विक्रम के दोस्‍तों के साथ हँसी-मज़ाक, छींटा-कशीं सब चालु रहती है। वक्‍त के साथ-साथ पता नहीं चलता और विक्रम के दोस्‍त सुनील के साथ उसका बाहर घूमने आना-जाना बढ़ जाता है। वे इस लड़कपन के प्‍यार में इस तरह खो से जाते हैं कि उन्‍हें दिन-दुनिया की भी कोई परवाह ही नहीं रहती।

होस्‍टल में भी सीमा समय पर नहीं पहुँचती, फिर भी मीता उसे समझाती है, जिस राह पर वह चल रही है, वह उसके लिए ठीक नहीं है। “सीमा ने भी बाहरी दुनिया देखी नहीं, वह तो केवल मस्‍तमौला रहने की आदत थी उसकी। एक तो अनाथ आश्रम में पली बड़ी।”

आखिर वक्त आ ही जाता है! कॉलेज के वार्षिकोत्‍सव का, जिसके लिए बहुत ही मेहनत से चयनीत छात्र-छात्राओं ने अभ्‍यास किया है और उन्हें रहता है बड़ी बेसब्री से इंतजार । फिर आगाज़ होता है डांस परफॉरमेंस का, एक-एक करके सबकी बारी के साथ कार्यक्रम जारी रहता है और जब सीमा व सुनील की बारी आती है तो “वे गायब, सभी ढूँढ़ते हैं पर मिलते नहीं और सबके परफॉरमेंस हो जाते है, केवल सीमा और सुनील को छोड़कर।” अब क्‍या किया जाए? ऐसे में विक्रम अपने दोस्‍तों के साथ ही है, इतने में छात्राएँ इस तनाव में रहती हैं, पर मीता शांत रहकर हल निकालती है और कहती है हमको यह कार्यक्रम इस गाने की समाप्ति के साथ ही ख़तम करना है। इतने में माईक पर पुकार होती है और समयाभाव “इसी कशमकश में स्‍टेज पर चार-पाँच छात्र-छात्राओं के साथ मीता और विक्रम” हम न रहेंगे या तुम न रहोगे, ये प्‍यार हमारा हमेशा रहेगा, प्‍यार का ऐसा फसाना रचेंगे कि याद हमारी ज़माना करेगा। ” तालियों की गड़गडाहट के साथ वार्षिकोत्‍स्‍व का समापन हो जाता है।

सीमा को ढूँढ़ते हुए होस्‍टल पहुँचती है मीता, तो उसे वार्ड़न बताती है कि सीमा जल्‍दी-जल्‍दी में किसी लड़के के साथ आई और बाईक पर एकदम से चली गई। फिर पता करके मीता पहुँचती है अस्पताल जहाँ उसकी सहेली सीमा अबॉर्शन के लिये भर्ती होती है और सुनील भी साथ में। ये सीधे जाती है सहेली सीमा के पास और कहती है यही है तुम्‍हारा लड़कपन का प्‍यार? “दूसरे लोगों की देखादेखी कम करो तुम लोग, एक से प्‍यार किया और फिर ठुकरा दिया।” अरे जब प्‍यार किया है तो निभाना भी जानो सखी। इतने में लेड़ी डॉक्‍टर भी आ जाती है, क्‍या बात हो गई? “मीता सुनील को समीप बुलाकर डॉक्‍टर के सामने ही अरे लड़कपन के प्‍यार को भी कभी निभाकर तो दिखाओ, केवल एक दूसरे का शारिरीक आकर्षण देखकर ही प्‍यार न करो और करो तो निभाना भी सीखो मेरे दोस्‍त।” ये क्‍या गुनाह करने जा रहे हैं आप लोग? “वो नन्‍ही-सी जान जो इस दुनिया में अभी आई भी नही, उसको आने से पहले ही खत्‍म कर देंगे आप लोग?” अरे अब प्‍यार किया है तो वास्‍तविक रूप में भी स्‍वीकारो, ये तो सोचो हमे भी तो कितने जतन से माँ ने जन्‍म दिया और माता-पिता ने पालन-पोषण किया तो क्‍या वह नन्‍ही-सी जान जो सीमा के पेट में पल रही है, उसकी जान इतनी सस्‍ती है? “जिंदगी में सच्‍चा प्‍यार एक ही बार मिलता है और वह भी लड़कपन में ही सही पर अब किया है तो डंके की चोट पर उस वास्‍तविक स्थिति का सामना करना भी तो सीखो।” लेड़ी डॉक्‍टर भी मीता की बातें सुनकर हतप्रभ रह जाती है और विक्रम भी जो अपने दोस्‍तों के साथ ढूँढ़ते हुए वहाँ पहुँचता है, वह भी यह सब सुनकर अचंभित हो जाता है और मन ही मन उसे मीता से प्‍यार हो जाता है।

फिर इस तरह से मीता अपनी सहेली का अबॉर्शन होने से रोक लेती है और विक्रम के साथ इस बारे में बात करती है। “सभी दोस्‍त मिलकर सुनील के घर जाकर उसके माता-पिता को बताते हैं, सुनील के पिता बैरिस्‍टर और माता शिक्षिका।” पर वे इतने सुलझे हुए और सकारात्‍मक सोच रखते हुए मामले का सुलझाते हैं कि सुनील अपना बी.कॉम. नियमित रूप से करेगा और सीमा घर से प्राईवेट परीक्षा देगी। “इसी बीच वे उन दोनों का विवाह भी संपन्‍न कराते हैं और साथ ही सुनील को बैंक की नौकरी का ऑफर आया है।” वे सोचते हैं कि नन्‍ही-सी जान जो आई भी नहीं है इस दुनिया में लेकिन वह कितनी शुभ साबित हुई।

कॉलेज की परीक्षाओं की समाप्ति के अंतराल के चलते मीता की माँ उसे छुट्टियों में घर ले जाने के लिए आती है तो “विक्रम बाकायदा उनसे मीता से शादी करने का प्रस्‍ताव रखता है और उनको गाँव ले जाता है अपने माता-पिता से बात करने।”

विक्रम की माँ कहती है, “आखिर तुझे भी प्यार की परिभाषा समझ में आ ही गई, हर जगह अकड़ नहीं चलती बेटा।” ज़िन्दगी जीने के लिये आपसी प्रेम और सहिष्‍णुता भी बेहद ज़रूरी है। हाँ माँ कॉलेज में ऐसा ही वाकया देख लिया है मैने और मुझे एक कंपनी में नौकरी के बुलावा भी आया है। विक्रम के माता-पिता मीता की माँ से कहते हैं अभी गोद भराई की रस्‍म करके शादी पक्‍की किए देते हैं और जब इनकी पढ़ाई खत्‍म हो जाएगी, साथ ही दोनों अपने पैरों पर खड़े हो जाएँ, तभी हम इनका ब्याह धूमधाम से करेंगे।

“आखिर आज की स्थिति की वास्‍तविकता को देखते हुए दोनों का नौकरी करना अति-आवश्‍यक है, सो इस लड़कपन के प्‍यार को हम माता-पिता को इनको निभाना जो सिखाना है।”

वर्तमान स्थिति में भी माता-पिता को लड़कपन में अपने बेटे-बेटियों को इसी तरह से सकारात्‍मक रहकर सही-गलत कदमों के बारे में समझाने की बेहद आवश्‍यकता है ताकि उनके कदम ज़िन्दगी में किसी भी परिस्थिति में निर्णय लेने हेतु कदापि न लड़खड़ाएँ।

आरती अयाचित
भोपाल

Language: Hindi
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