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18 Mar 2020 · 1 min read

बस किताबों में लिखी रह जाएँगी चौपाइयाँ

एक दिन फट जायेगी कबिरा की सारी पोथियाँ
तुलसी सभी की नज़र में बन जायेगा बहुरूपिया

वे विवेकानन्द,गाँधी और गौतम मूर्ख थे
ये मानसिकता निगल लेगी संस्कृति की बोटियाँ

जूतियाँ होंगी न कोई सिर कहीं मिल पाएगा
अपना ही सिर होगा और अपनी ही होंगी जूतियाँ

नेता बने जो आज हैं वो सबके सब हैं भुखमरे
छीनकर खा जायेंगे जनता की सूखी रोटियाँ

वादे न केवल टूटेंगे…वे जाएँगे तुड़वायेंगे भी
बाँध देंगे जबरन ही चाणक्य की सब चोटियाँ

सब पुराने लेखकों की रागिनी थम जायेगी
तुलसी,बिहारी,जायसी बन जाएँगे परछाइयाँ

उठ जायेगी अर्थी पुरानी सब विधाओं की
बस किताबों में लिखी रह जाएँगी चौपाइयाँ

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